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कुलकरों की भोगभूमि से तीर्थंकर आदिनाथ की कर्मभूमि तक
अनुपम है कथा भगवान बाहुबली की जो सइ कृति के नायक हैं, और जो प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के पुत्र थे। आदिनाथ को ऋषभदेव के नाम से वेदों और पुराणों में भी स्मरण किया गया है। इन्हीं आदिनाथ भगवान को कहा गया है महादेव, अर्हत् और रुद्र । ऋग्वेद का सूक्त है :
विधा बद्धो वृषभो रोरवीति
महोदेवो मान आविवेश (4,58, 3) इसका अभिप्राय इस प्रकार से स्पष्ट किया गया है : 'विधा बद्धः' तीन प्रकार से आबद्ध हैं ऋषभदेव-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की साधना से; 'रोरवीति...'उन्होंने ऊंचे स्वर में धर्म की घोषणा की और वह महान् देव के रूप में मनुष्यों में प्रकट हुए। ___ भगवान आदिनाथ कब हुए, शताब्दियों के इतिहास का आलोक वहां तक नहीं पहुंच पाया है। किन्तु प्राचीनतम प्रमाण यह कहते हैं कि मनुष्य की सामाजिक व्यवस्था के आदिकाल में भगवान ऋषभ हुए। इसीलिए वह आदिनाथ कहलाये। उनके आगमन से पहले मनुष्य ने कबीलों में या कुलों में रहना सीख लिया था । इन कबीलों के नेता 'कुलकरों' ने समाज को निर्भय बनाने, बदलती हुई परिस्थितियों में अपनी रक्षा करने का प्रारम्भिक ज्ञान दे दिया था।
लेकिन कुलकरों की परम्परा से पहले मानव-समाज जिस अवस्था में रहता था, पुरानी पोथियों में उसे 'भोगभूमि' कहा गया है। मनुष्यों की उत्पत्ति जोड़ों में होती थी। एक बालक और एक बालिका एक साथ उत्पन्न होते और एक साथ साहचर्य के रूप में जीवन-लीला समाप्त करते थे। पृथ्वी पर उगे वृक्षों से वे अपनी आवश्यकताओं की सभी वस्तुएँ पाते थे। जो कल्पना मन में आती, धरती के ये पेड़ उसे पूरी कर देते । इसीलिए इन्हें 'कल्पवृक्ष' कहा गया है । ये कल्पवृक्ष दस प्रकार के होते थे