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अन्तर्द्वन्द्वों के पार वाग्मी : रानियों और राजघरानों से सम्बन्धित महिलाओं के धार्मिक कार्यों का
प्रचुरता से उल्लेख है : (1) दसवीं शताब्दी की अत्तिमव्वे ने, जो सेनापति मल्लप की पुत्री और नागदेव की पत्नी थी, पोन्नकवि के शान्तिपुराण की एक हजार प्रतियां लिखवाकर शास्त्र-भण्डारों में भेजीं। पन्द्रह हजार मूर्तियां सोने और रत्नों की बनवायीं। (2) इसी काल की पामब्वे ने, जो राजा भूतुंग की बड़ी बहिन थी, तीस वर्ष तक तपस्या की । पोचव्वरसी, भाललदेवी, चट्टलदेवी,
महादेवी, पम्पादेवी आदि अनेक महिलाओं के नाम भी आते हैं। अनुगा : क्या कर्नाटक का कोई ऐसा राजवंश भी है जिसके प्रताप के साथ
महिलाओं की कीर्ति सबसे अधिक जुड़ी हुई है ? श्रुतज्ञ : क्या समझते हैं, पुराविद्जी ? पुराविद् : इस श्रेणी में मुझे तो होयसल वंश सर्वोपरि लगता है। सबसे अधिक
शिलालेख भी इसी वंश के व्यक्तियों के हैं । कालक्रम से विष्णुवर्धन के 10, नरसिंह प्रथम के 3, बल्लाल द्वितीय के 4, नरसिंहदेव द्वितीय के 3। फिर 12वीं शताब्दी के 19 और तेरहवीं के 4। विष्णुवर्धन के समय में पोयसल सेट्टि और नेमि सेट्टि की माताओं मच्चिकन्वे
और शान्तिकव्वे ने चन्द्रगिरि के तेरिन बसदि का निर्माण कराया और
फिर भानुकीर्ति मुनि से दीक्षा ले ली। (लेख 229, शक सं. 1039)। वाग्मी : शिलालेखों के अनुसार गंगराज का कृतित्व बहुत विशिष्ट है ! पुराविद् : अवश्य । वह विष्णुवर्द्धन नरेश के सहायक राजपुरुष थे। लेखों में
गंगराज की वंशावलि और उनकी उपलब्धियां विस्तार से दी गई हैं। लिखा है"जिस प्रकार इन्द्र का बज्र, बलराम का हल, विष्णु का चक्र, शक्तिधर की शक्ति और अर्जुन का गांडीव सहायक हैं उसी प्रकार विष्णुवर्द्धन के गंगराज सहायक थे।" कन्नेगल के युद्ध में गंगराज ने विष्णुवर्द्धन की ओर से चालुक्यों को
जीत लिया था और विष्णुवर्द्धन अत्यन्त प्रसन्न हुए थे। श्रुतज्ञ : आप तो जानते ही हैं पुराविद्जी, कि नरेश ने प्रसन्न होकर गंगराज
से कहा, 'आपकी जो मनोकामना हो कहें, मैं पूरी करूँगा।' और इस धर्मात्मा सेनापति ने विष्णुवर्द्धन से परम नामक गाँव मांगकर उन मन्दिरों को अर्पित कर दिया जो उसकी माता ने बनवाए थे। इसी प्रकार विजय के उपलक्ष्य में उसने राजा से गोविन्दगडि ग्राम मांगा और उसे गोम्मटेश्वर को अर्पित कर दिया।