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श्रवणबेल्गोल के शिलालेख...
इनका उल्लेख शिलालेखों में है। ० लेख क्र. 360 के अनुसार उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र की प्रति को शिवकोटि सूरि ने अलंकृत किया। लेख क्र. 77 (सन् 1129) में कतिपय शास्त्रकारों और उनकी रचनाओं का उल्लेख इस प्रकार है: वज्रनन्दि मुनि---नवस्तोत्र सुमतिदेव ------सुमतिशप्तक चिन्तामणि ---चिन्तामणि श्रीवर्द्धदेव ----चूड़ामणि चन्द्रकीति गणि-.-श्रुतबिन्दु
दयालपाल मुनि---रूपसिद्धि • लेख क्र. 71 (सन् 1163) के अनुसार पूज्यपाद देवनन्दि ने जैनेन्द्र व्याकरण, सर्वार्थसिद्धि, जैनाभिषेक तथा समाधिशतक की, और
श्रुत-कीर्ति विद्य ने राघव-पांडवीय की रचना की। • लेख क्र. 569 के अनुसार श्रीपाल विद्यदेव ने विजयविलास तथा .. लेख क्र. 364(सन् 1432) के अनुसार चारुकीर्ति मुनि ने सारत्रय
और सिद्धान्तयोगी ने सिद्ध शास्त्र का प्रणयन किया। . लेख क्र. 360 में कुन्दकुन्दाचार्य के सम्बध में उनके इस अतिशय
का उल्लेख है कि वह आकाश-गमन कर सकते थे और पृथ्वी से
चार अंगुल ऊपर तो चलते ही थे। पुराविद् : हो सकता है, अलंकारिक भाषा में यह कहने का तात्पर्य हो कि वह
अन्तरंग और बहिरंग परिग्रह से अछूते रहते थे। श्रुतज्ञ : सचमुच, यही वाक्य ज्यों का त्यों वहां आया है। अनगा : महिलाओं के समाधिमरण के तो अनेक उल्लेख आपने बताये, किन्तु
उनके कृतित्व के कोई अन्य आयाम भी हैं ? श्रतज्ञ : वास्तव में श्रवणबेल्गोल के सारे परिवेश में महिलाओं की भक्ति, त्याग,
व्रतसाधना, सल्लेखना ही प्रमुख हैं। राज्य व्यवस्था में किसी महिला
का हाथ रहा हो, ऐसा कहीं मेरे देखने में नहीं आया। पुराविद : नहीं, ऐसा नहीं । इतिहास में उल्लेख है कि सन् 911 में जब नागर
खण्ड के अधिकारी सत्तरस नागार्जुन का देहान्त हो गया तो राजकाज का दायित्व उसकी पत्नी जाविकयब्बे को संभालना पड़ा। उसने बड़ी दक्षता के साथ राज्य-संचालन किया। बड़ी वीरांगना थी वह । और, जब उसका अन्त समय समीप आया तो उसने वन्दनि नामक स्थान पर समाधिमरण पूर्वक शरीर त्यागा।