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________________ विदूषक वसन्तमाला प्रतिसूर्य विदूषक प्रतिसूर्य विदूषक प्रतिसूर्य पयनंजय प्रतिसूर्य - पवनंजय प्रतिसूर्य - - - 52 माननीय वसन्तभाला, तुम दोनों मातङ्गमालिनी का वृत्तान्त हो । आर्य उस अत्यन्त दारुण वृत्तान्त को कैसे कहूं, जिससे स्मरण करते हुए इस समय भी मेरा हृदय काँप रहा है। आज उस बीते हुए की क्यों याद दिला रहे हो ? तो सुनो। सावधान हूँ । अनन्तर (सरोवण के ) सरोवर के किनारे रोकी हुई भी पुनः आँखों में आँसू भरे हुए यह अञ्जना महेन्द्रपुर को जाने के लिए बसन्तमाला से प्रोत्साहित हुई, जीवन से निरपेक्ष होने के कारण और स्त्री प्रकृति की व्यामुग्धता के कारण और उस प्रकार की भवितव्यता के कारण उसके वचनों को भी न मानती हुई, त्रिपरीत भाग्य के द्वारा हो मानों प्रेरित की जाती हुई उसी क्रूर वन्य पशुओं से दूषित, जिस पर संचार करना कठिन था, जो ऊबड़ खाबड़ श्री तथा जो पत्थरों के टुकड़ों और कंकड़ों से व्याप्त थी, जड़ से लेकर कटीली लताओं, दलदल से घिरी हुई, मनुष्यों के द्वारा न देखी जाती हुई मातङ्गमालिनी में प्रविष्ट हो गई । फिर क्या हुआ । अनन्तर उसी मातङ्गमालिनी में मार्ग दिखाई न देने के कारण दोनों बिना लक्ष्य के चारों ओर परिभ्रमण करतो हुई अपनी इच्छा से गन्धर्व राज मणिचूड के आवाम रत्नकूट पर्वत की तलहटी की समीपवर्ती भूमि में, जो मानों बसन्त समय का उत्पत्तिस्थान थी, खायु का विहार प्रदेश श्री नन्दनवन की मानों प्रणयिनी श्री, वनमाला आई । 1 फिर क्या हुआ ? अनन्तर दोनों ने कुछ विकसित हृदय से वहीं निवास के योग्य प्रदेश को खोजते हुए बहुत देर बाद उसी पर्वत के पूर्व दिशा के एक भाग में आश्रित एकान्त रमणीय, गुफा का द्वार प्राप्त किया । अनन्तर 1 अनन्तर नहीं एकत्रित दोनों ने आत्मा में आत्मा को, आत्मा के द्वारा ध्याते हुए, पाप रहित, समस्त इन्द्रियों के उपद्रवों पर जिन्होंने नियन्त्रण कर लिया है, जो पर्यङ्कासन में स्थित है, त्रैलोक्यदर्शी हैं, तप की साक्षात् मूर्ति हैं ऐसे निर्ग्रन्थ मुनिश्रेष्ठ भगवान् अमितगति के सौभाग्य से दर्शन किए || 7 || पवनंजय तीन ज्ञान (मति, श्रुत और अवधिज्ञान) रूपी नेत्र वाले भगवान् को नमस्कार हो । प्रतिसूर्य - अनन्तर ये दोनों उनके दर्शन के सुख से सहसा गहन वन में परिभ्रमण करने से उत्पन्न थकान को भूल गई। सब प्रकार से सन्तुष्ट मन से भगवान् अमितगति की विधिपूर्वक प्रदक्षिणा देकर भक्तिपूर्वक प्रणाम कर थोड़ी दूर बैठी । अञ्जना और वसन्तमाला उन दुःखी व्यक्तियों के शरणभूत को नमस्कार हो । प्रतिसूर्य अनन्तर उन भगवान् अमितगति ने उसी समय योग समाप्त कर करुणा से आर्द्र नेत्रों से मुहूर्त भर के लिए देखकर शान्त और गम्भीर वाणी में कहा
SR No.090049
Book TitleAnjana Pavananjaynatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size1 MB
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