SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वसन्तमाला - ओह, समस्त राजसमूह हर्ष से भरा हुआ दिखाई दे रहा है। पवनजय - (अंजना को देखकर) हे दुर्बल शरीर बाली, निमेष की रुकावट की परवाह न करते हुए दोनों नेत्रों को हर्ष के आंसुओं से भरकर कृतार्थ करते हुए, पुनः शिर सूंघकर प्रसन्नता पूर्वक घने रोमांच वाली दोनों भुजाओं से तुम्हारे पुत्र हनुमान् को आलिंगन करता हुआ पद को शासन वाणी तक स्थानी बनाऊं 14|| विदूषक - (हर्ष पूर्वक, सामने निर्देशकर) मित्र, देखो ! यह महाराज प्रतिसूर्य वत्स हनूमान् को लेकर छज्जे पर विधमान महेन्द्रराज प्रमुख महाराज के साथ निकलकर इधर आ रहे हैं। (सभी देखकर हर्ष पूर्वक उठते हैं) पवनंजय - (देखकर) यह प्रतिसूर्य प्रभातकालीन रम्य उदयाचल की लक्ष्मी को धारण कर रहे हैं। नमिवंश की पताका स्वरूप यह वत्स हनुमान उदित होते हुए तरुण सूर्य के समान लग रहे हैं ॥5॥ (अनन्तर हनूमान् को लाकर प्रतिसूर्य प्रवेश करता है) प्रतिसूर्य - वत्स हनुमान्, अपने पिता को देखो । जो ये प्रभाव में महान्, समस्त विश्व को आह्लादित करने वाले हैं । ये गुणों के समुह के साथ आपके भी जन्मदाता हैं । हनूमान् - (देखकर हर्षपूर्वक) यह पिता हैं। विदूषक - (समीप में जाकर) महाराज की जय हो । अजना - (समीप में जाकर) माता, बन्दना करती हूँ। प्रतिसूर्य - वत्से, कल्याणिनी होओ । पवनजय - महाराज, यह प्रह्लाद पुत्र प्रणाम करता है। प्रतिसूर्य - युवराज, चिरकाल तक जिओ । वत्स हनूमन्, अपने पिता की अभिवन्दना करो । हनूमान् - पिता जी, वन्दना करता हूँ। पवनंजय - (स्नेह पूर्वक) वत्स, आयुष्मान् होओ । (गले लगाता है । वसन्तमाला - महाराज, इस भद्रासन को अलंकृत करें । प्रतिसूर्य - युवराज, अलंकृत कीजिए । (सभी यथायोग्य बैठते हैं।) पवनंजय - हनुमन्, अपने पिता के मित्र को प्रणाम करो । हनूमान् - (उठकर समीप में जाकर) - तात, वन्दना करता हूँ। (स्नेह पूर्वक आलिंगन कर, और गोद में लेकर) वत्स, दीर्घायु होओ । वत्स, उन्हें प्रणाम करो। हनुमान् - (उठकर और समीप में जाकर) माता जी, बन्दना करता हूँ। अञ्जना - पुत्र, दीर्घायु होओ । वसन्तमाला - पुत्र, बैठों (अपनी गोद में बैठाकर) ओह, यह बात निश्चित सत्य है कि जोते हुए कल्याण की प्राप्ति होती है क्योंकि कि हम लोग सैकड़ों आपत्तियों के पात्र हुए । विदूषक -
SR No.090049
Book TitleAnjana Pavananjaynatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy