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________________ 47 हो गया हूँ। जब तक कुमार पवनंजय को खोजता हूँ । (घूमकर ओर देखकर) आंह, आकाशसला इन्द्रधनुष के प्रकारों से चित्रित है । इन्द्रगोप के समूह द्वारा किए गए उपहार वाला पृथ्वीतल है । दिशायें ककुम के पराग के धूसर है। मन्द वायु प्रस्फुटित हुई केतकी की पराग से धूसरित है । बनस्थली नए खिली हुए कन्दली की कलियों से चित्र विचित्र है । मयूर की ध्वनि केअन्तराल में गिरे हुए इन्द्रधनुष के विभ्रम को धारण करने वाले, नृत्य करते समय मोरों के द्वारा गन्ध युक्त पर्वत शिखर चोंचो से चन्द्रकित (चन्द्रमा के समान आकार युक्त) किए जा रहे हैं । इस प्रकार मैं मानता हूँ कि इस समय पवनंजय कष्टकर दशा का अनुभव कर रहे हैं । मातङ्गमालिनी को चारों ओर से देख लिया । तो इसी गन्धर्वराज मणिचूड के आवासभूत रत्नकूट पर्वत के तलहटी के उपवन की समीपवती भूमि में स्थित वन पंक्ति वाली वनमाला को खोजता हूँ। (घूमकर और देखकर) ओह, यह रेतीले तलों पर हाथी के पद पंक्तियों से अनुसत सड़बड़ाने से विषम पैरों के चिन्हों की कतार है । ( देखकर) स्पष्ट रूप से ये विद्याधर राजलक्ष्मी के साम्राज्य के चिन्ह हैं । तो प्रहलाद के पुत्र पवनंजय के पैरों के चिन्हों को यह पंक्ति भली प्रकार दिखाई दी |0|| ये निश्चित रूप से उसके सहचारी कालमेघ के पैर हैं । तो इस समय इन्हीं पैरों के चिन्हों की कतार का अनुसरण करता हुआ जा रहा हूँ । (घूमकर और देखकर) क्या बात है, वह पैरों के चिन्हों का मार्ग भी इस पर्वत की जगतो पर स्थित शिलातल पर नहीं दिखाई दे रहा है। तो यहाँ क्या उपाय है ? (देखकर) ओह, यह मकरन्द की बावड़ी के तीर के समीप पषनंजय का सामान्य रूप से प्रिय सखा श्रेष्ठ गज कालमेघ बैठा है । तो पवनंजय दिखाई पड़ ही गया । (समीप में जाकर) भद्र नामक हाथियों में श्रेष्ठ आप क्या अच्छी तरह हैं क्या तुम सुखी हो । क्या तुम्हारा प्रिय मित्र प्रहलाद राजा का पुत्र कुशल है ? जिसके स्नेह से अनुसरण करते हुए आपने कष्टकर अवस्था का अनुभव किया, प्रिया के वियोग से दुखी रूप में स्थित वह पधनंजय कहाँ है ॥5॥ (सुनकर) ओह मन्दस्निग्ध कण्ठगर्जन से तिरछी गर्दन किये हुए मेरे वचन को यह स्वीकार कर रहा है । तो पवनंजय को समीपवती होना चाहिए । जब तक इसी मकरन्द वापिका के किनारे के प्रदेश में खोजता हूँ। (परिक्रमा देकर, सामने शङ्का सहित देखकर) बाण से युक्त यह किसका धनुष गिरा है। (देखकर) पवनंजय के बाणों पर स्पष्ट रूप से ये नाम के अक्षर दिखाई दे रहे हैं ' (शोक सहित) तो यह क्या है ? (सोचकर) प्राण के समान प्रिया के वियोग मे विवश उसके हाथों के अग्रभाग से यह गिर गया है । जो कामदेव के द्वारा यह कैसी कष्टकर दशा को ले जाया जा रहा है ।।52|| (सामरे देखकर शङ्का सहित)
SR No.090049
Book TitleAnjana Pavananjaynatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size1 MB
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