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________________ 41 बढ़े हुए मद के झरने से युक्त रुके हुए कर्णताल वाला क्रोध से अनेक बार नेत्र रूप किरणों से दश दिशाओं को जलाता हुआ सा, शीघ्र ही दायें दाँत को अर्गला को उठाये हुए, सामने हाथ को रखे हुए इस समय युद्ध की शङ्का से देख रहा है 1 | हे श्रेष्ठ गन्धहस्तिन्, बिना किसी विषय के ही इस युद्ध के उद्योग से बस करो। यह बेचारी मातङ्गमालिनी निरपराध है । देखो । I चंचल किसलय रूप हाथों मे आदरपूर्वक हुई हों की डालों के अग्रभाग से विनम्रता से झुकी हुई यह सामने विकसित होते हुए मालुधानी के पुष्पों के समूह के गिराने से हमारे लिए पूजा की सामग्री (अर्थ्य) रूपी लाजाज्ञ्जलि ला रही है | ॥१॥ तो इस समय हम लोगों को जहाँ पहले नहीं खोजा था. ऐसे वन प्रदेशों में खोजना चाहिए। तो आओ । हे हाथी, तुम्हारी सूंड के आकार के समान दोनों जंघाओं की गति हो तुम्हारी गति है। तुम्हारे मद की काली रेखा रोमपंक्ति की अत्यधिक समानता को धारण करती है। जिसका स्तनों का तटयुगल तुम्हारे गण्डस्थल के समान हैं, उस हरिणियों की सी नेत्र वाली को हम ढूँढ रहे हैं ॥१०॥ (परिक्रमा देकर और आगे की ओर शोक सहित देखकर ) अरे बड़े कष्ट की बात है, यह वनस्थली जाम की नोंकों से कण्टकित है। बड़े खेद की बात है, इसमें प्रिया पैदल कैसे गई होगी |||| ( सोचकर ) इन मार्गों में सखी का आगमन वसन्तमाला नहीं सहन करती है। तो यहाँ से हम लोग चलते हैं । (परिक्रमा देकर और हर्पपूर्वक देखकर ) मैंने प्रिया का मार्ग देख हो लिया । क्योंकि उसकी गति का कथन करने वाली वह यह महावर के रस से अङ्कित चरणपंक्ति मेरे द्वारा समीप में ही दिखाई दे रही है | 1720 तो इस समय उसी मार्ग से जाता हूँ (समीप में जाकर खेद पूर्वक देखकर ) क्या ये कदम्ब के फूलों के समूह का अनुकरण करने वाले इन्द्रधनुष के द्रव के बिन्दुओं को धारण करने के कारण सुन्दर वर्षाकाल की सूचना देने वाले कामाग्नि की चिनगारी के टुकड़े रूप महेन्द्रगोप विद्यमान है । 1131 तो बिरही लोगों के संक्षोभ रूपी युद्ध का दुलारा यह वर्षा समय प्रवृत्त ही है । (आकाश की ओर देखकर) यह बादल जोर से गर्जता हुआ समीप में जल की धारा वर्षा रहा है । विद्युत समूह चमक रहे हैं। हा, हा, धिक् धिक्, कष्ट, कष्ट है । 1114] (परिक्रमा देकर और हर्षपूर्वक देखकर) माननी ने मार्ग लक्षित कर ही लिया । यहाँ पर निश्चित रूप से मेरे द्वारा प्रवास से अपराध किए जाने पर रोष से प्रिया की लड़खड़ाती हुई गतियों में क्रोध के कारण जो धागा 'टूटने से बिखर गया था, ऐसा मोतियों का हार मेरे द्वारा देखा गया | 115 11 - (सावधानी पूर्वक देखकर ) समीप में नए-नए मोती रूप फूलों से शोभित शङ्ख की स्त्री का अनुसरण करती हुई यह हाथी के दाँतों की अगला कैसे है ? हमारे विपरीत भाग्य
SR No.090049
Book TitleAnjana Pavananjaynatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size1 MB
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