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________________ _30 इस चक्रवाक के जोड़े को एक बार में हो अलग कर दिया । 19|| (चला जाता है) इस प्रकार श्री हस्तिमल्ल विरचित अंजना पवनंजय नामक नाटक में चतुर्थ अङ्क समाप्त हुआ । पञ्चमों अङ्क सेनापत्ति - (अनन्तर सेनापति प्रवेश करता है) ओह, पवनंजय व पराक्रमसीर १. सचानना है। सब जगह जिसका निवारण नहीं किया जा सकता, ऐसे बहुत बड़े शौर्य की अवस्था प्रायः प्राप्त की है । जिसके सेवकों में गणना मात्र से आदर प्राप्त किया उत्कर साहस वाला योद्धा संग्राम रूपी रङ्गस्थल के आँगन में तलवार रूपी लता के नृत्योपदेश का उत्सुक होकर अपनी भुजा का साहाय्य करता है | 170 कुमार अपने यश रूप .सशि से शुभ दन्त रूप दो अर्गलाओं से दोनों ओर से विशद झरने की फुहार जिससे झर रही हो, ऐसे नीलगिरि पर्वत थे, समस्त मद का समूह जिसमें एकत्रित हो गया था, ऐसे श्रेष्ठ गन्धगज थे, अत्यन्त लाल-लाल दो नेत्रों से मानों कोपानि निकाल रहे थे, मद के सुगन्ध के लोभी होने पर भी अत्यन्त डरे हुए पौरों के द्वारा मानों उनका दूर से ही परिहार कर दिया गया था, निरन्तर गिरते हुए मदजल की वर्षा से वर्षा ऋतु में काले मेघ पर चढ़कर खरदूषणादि को छुड़ाने के लिए जिन्होंने युद्ध किया हो, इस प्रकार युद्ध रूपी आँगन में उतरे थे। अनन्तर वेगपूर्वक मद से युक्त हाथियों के समूहों के बन्धन टूट गए । वीरपुरुषों के भयभीत हाथों से शस्त्र छूट गए । जिनके मन में शीघ्र भागने का निश्चय था, ऐसे परेशान सारथि रथ के सामान को बदल रहे थे । अत्यधिक टूटते हुए हजारों व्यूह क्षण भर के लिए दुर्विमेध हो रहे थे । अत्यधिक टूटते हुए हजारों व्यूह क्षण भर के लिए दुर्विभेद्य हो रहे थे । राजीव प्रमुख वरुण के पुत्र भय के कारण युद्ध की घटनाओं को भूलकर जहाँ कहीं शीघ्र भाग रहे थे । स्वयं भी गन्याहस्तो पर बैठे हुए कुमार ने वरुण पर आक्रमण कर दिया । अनन्तर स्वयं साधुवाद कहकर श्रेष्ठ देवों ने भी पुष्पवर्षा की । अअलि रन्त्रकर विद्याचरों ने चारों ओर से जय, जय, इस प्रकार जयोत्सव को घोषणा की। 11211 अनन्तर पराक्रम से आवर्जित वाले वरुण ने थोड़े समय मन्दमुस्कराइट के साथ खड़े होकर युद्ध का निषेध कर कुमार से कहा कि - कुमार ! तुम्हारे बहुत सारे पराक्रम रसों से हम प्रसत्र है । इन विस्मयों के कारण इस समय युद्ध का उद्योग छोड़ दीजिए | और कथनों से क्या ? आपने हम सबको जीत ही लिया । तो आज से लेकर हम लोगों का ढ़ सौहार्द हो । ।
SR No.090049
Book TitleAnjana Pavananjaynatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size1 MB
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