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कक्खुकी
क्रूर
चेट
क्रूर कञ्चुकी
क्रूर
कञ्चुकी
क्रूर कञ्चुकी
क्रूर -
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कञ्चुकी
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कञ्चुकी
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और क्या ?
हिन्तालक, तुम इस पुराने उद्यान के बाहर मेरी प्रतीक्षा करो । जो स्वामी की आज्ञा ।
( चला जाता है)
इस समय आर्य विश्वस्त होकर कहें ।
देवी केतुमती तुम्हें आज्ञा देती हैं ।
चिरकाल के बाद देवी केतुमती के द्वारा स्मरण किया गया हूँ ।
( विषादपूर्वक ) अरे बड़े कटकी बात है। मेरे द्वारा भी यह सन्देश दिया
जा रहा है।
जो
कुछ
भी हो। स्वामिनी के सन्देशों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। (आँखों में आँसू भरकर कान में) बात ऐसी है
(विषादपूर्वक दोनों कान बन्द कर) आः, क्या करूँ ?
( क्रूर निकल जाता है)
क्या बात है, स्वभाव से निठुर इसके लिए भी यह सुनना कठिन हो गया। यहाँ पर ठहरने से क्या । दुरात्मा क्रूर निकल गया है। तो जब तक नगरी में ही प्रवेश करता हूँ ( परिक्रमा देता हुआ) सौभाग्य से दुश्चरित्र लोगों के सम्पर्क से छूट गया हूँ ।
यह बात सोचने की है कि इस समय समस्त जगत के लिए प्रायः पुण्य से भी अधिक पाप अत्यधिक प्रिय हो रहा है। अतत्व श्रद्धान रूपी व्यसन के पराधीन, अविवेक के स्थान रूप बुद्धि वाले लोगों के लिए इस प्रकार का आमोद-प्रमोद होवे | 1017 ||
अधिक कहने से क्या - अरे अरे, दुश्चरित्र में लगे हुए मन वाले सब लोग सुनो। तुम जड़ों के द्वारा व्यर्थ ही यह महान् काल क्यों बिताया जा रहा है। तो परिपाक में विरस दुश्चेष्टाओं से शीघ्र ही अलग होकर पुरुषार्थ के साधन रूप जिनेन्द्र भगवान् के पथ में व्यवहार करना चाहिए | ||18|| ( घूमता है)
हा, हा, मैं मन्द भाग्यवाली मारी गई हूँ। क्या यह भी मुझे देखना पड़ रहा है। सभी देवताओं, तुम सब शरण हो। मेरी प्रिय सखी के स्वामी पवनंजय, अपनी पत्नी की रक्षा करो। हाय आर्य प्रहसित, तुम अपने प्रिय मित्र की पत्नी को देखो | हाय महाराज प्रतिसूर्य इस प्रकार की भानजी की रक्षा करो। हा महाराज महेन्द्र, तुम्हारी पुत्री यह भी अनुभव कर रही है। हा कुमार अरिन्दम, हा प्रसन्न कीर्ति, तुम दोनों अपनी लाड़ली इस प्रकार की अवस्था खाली छोटी बहिन को देखो ।
( सुनकर, विषादपूर्वक दोनों कान बन्द कर ) पाप शान्त हो । अरे बड़ा कष्ट है। यह बेचारी वसन्तमाला का करुणापूर्ण विलाप है। दुष्ट क्रूर की क्रूरता फलित हुई । तो यहाँ से हम सब ( घूमता हुआ ) ओह, दिन ढल गया है। क्योंकि दुष्ट भाग्य ने इस समय परस्पर प्रेम की डोरी में बँधे हुए कुछ विवश