________________
क्रूर -
(मद का अभिनय करता हुआ, आदर पूर्वक) । जिसके नाम को सुनकर सुर और असुर काँपते है, वही क्रूर में विद्याधर भैरव हूँ 16॥ इतने लोक में मेरे लिए मन्त्र, यन्त्र अथवा तन्त्र से कोई कार्य दुष्कर नहीं है। मेरे सदृश अन्य कौन पुरुष है । । (समीप में जाकर) स्वामिन, यह मैं प्रणाम करता हूं। प्रिय शिष्य, जीवनपर्यन्त मेरी सेवा करते रहो । यह दास अनुगृहीत हुआ । यह नए कमल हैं । अरे हिन्तालक - इतने समय तक तुमने क्यों बिलम्ब किया । स्वामिन, आर्य लब्धभूति पुराने उद्यान में इस समय तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे है । उसे देखकर देर कर दी। इस समय चुप क्यों बैठे हो । नील कमलों से घड़े के आसव को सुवासित करो । हंसी रोकते हुए, मन ही मन । भली प्रकार कथाओं का अवसर मुझे विदित हो गया । (प्रकट में) जो स्वामी की आज्ञा । (यथोक्त करता है)। अरे हिन्तालक, जरा 3.... । त्रिशूलक नृत्य को यथेष्ट रूप से उल्लसित करते हुए, मधुरा, ध्रुवा विद्या को गाते हुए इस समय विहार कर रहा हूँ । [१] (दोनों धूमते हैं) (हर्ष पूर्वक गाता है)। भले प्रकार प्रसन्न (मदिरा को) सुखपूर्वक पीते हुए, पद-पद पर विषम रूप में लड़खड़ाते हुए अत्यधिक मत्त, महान् प्रभार वाला विद्याधर भैरव सदा विजयशील हो । 90 सरस कमल जिस पर रखे हुए हैं, ऐसी मदिरा को पीकर, मद होने पर भी शुभ में विहार कर रहा हूं, चलता हूँ, स्खलिप्त होता हूँ, अरे मैं क्रूर, क्रूर क्रूर हूँ | ||10IR (लड़खड़ाते हुए) अरे पृथ्वी कैसे चल रही है (हास पूर्वक) यह बात विदित हो रही है कि अत्यधिक मद के समूह से भरे हुए मुझे धारण करने में असमर्थ होकर सचमुच पृथ्वी चल रही है । 111111 अरे हिन्तालक, इस पीने के प्याले में घड़े से मदिरा उड़ेल दो अथवा उसी कुम्भ से आकण्ठ पीता हूँ । (वैसा कर) अरे यह मदिरा विशेष रूप से उत्तम रस से युक्त है 1 (मद का अभिनय करते हुए) मेरे बिना लोक कैसे एक महापुरुष सामान्य मनुष्य की प्रशंसा कर रहा है । तो मैं जाग्रत करता हूँ। सुनो-सुनो, जो सर्वथा सज्जन हैं, वे मेरे ही दोनों चरणों की भली प्रकार सेवा करें । जो लीला पूर्वक हास्ना पी पीकर खेल-खेल में लड़खड़ाते हुए शरीर से चलता हुआ विहार कर रहा है । ||12||
और -