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विद्या पर प्रख्यात अधिकारी विद्वानों द्वारा निबन्ध लेखन - प्रकाशनादि के विद्वानों द्वारा प्रस्ताव आये । इसके अनन्तर मास 22 से 24 जनवरी तक 1995 में व्यावर (राज.) में मुनिश्री के संघ सानिध्य में आयोजित 'आचार्य ज्ञानसागर राष्ट्रीय संगोष्ठिी" में पूर्व प्रस्तावों के क्रियान्धन की जोरदार मांग की गई तथा राजस्थान के अमर साहित्यकार, सिद्धसारस्वत महाकवि ब्र. भूरामल जो को स्टेच्यू स्थापना पर भी बल दिया गया, विद्वत् गोष्ठिी में उक्त कार्यों के संयोजनार्थ डॉ. रमेशचन्द्र जैन बिजनौर और पटो संयोजक चना गया । मनिश्री के आशीष से ब्यावर नगर के अनेक उदार दातारों के उक्त कार्यों हेतु मुक्त हृदय से सहयोग प्रदान करने के 'भार व्यक्त किये ।
पू. मुनिश्री के मंगल आशिध से दिनांक 18.3.95 को त्रैलोक्य तिलक महामण्डल विधान के शुभप्रसंग पर सेट चम्पालाल रामस्वरूप की नसियों में जयोदय महाकाव्य (2 खण्डी में) के प्रकाशन सौजन्य प्रदाता आर. के. माबलस किशनगढ़ के रतनलाल कंवरीलाल पाटनो श्री अशोक कुमार जी एवं जिला प्रमुख श्रीमान् पुखराज पहाड़िया, पीसांगन के करकमलों द्वारा इस संस्था का श्रीगणेश आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र के नाम से किया गया । ___आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र के माध्यम से जैनाचार्य प्रणोत ग्रन्थों के साथ जैन संस्कृति के प्रतिपादक ग्रन्थों का प्रकाशन किया जावेगा एवं आचार्य ज्ञानसागर वाङ्मय का व्यापक मुल्यांकन-समीक्षा-अनुशीलनादि कार्य कराये जायेंगे 1केन्द्र द्वारा जैन विद्या पर शोध करने वाले शोधार्थी छात्र हेतु 10 छात्रवृत्तियों की भी व्यवस्था की जा रही हैं ।
केन्द्र का अर्थ प्रबन्ध समाज के उदार दातारों के सहयोग से किया जा रहा है । केन्द्र का कार्यालय सेठ चम्पालाल रामस्वरूप की नसियों में प्रारम्भ किया जा चुका है । सम्प्रति 10 विद्वानों को विविध विषयों पर शोध निबन्ध लिखने हेतु प्रस्ताव भेजे गथे, प्रसन्नता का विषय है 25 विद्वान अपनी स्वीकृति प्रदान कर चुके है तथा केन्द्र स्थापना के प्रथम मास में ही निम्न पुस्तकें प्रकाशित की - प्रथम पुष्प -' इतिहास के पन्ने आचार्य ज्ञानसागर जी द्वारा रचित द्वितीय पुष्प - हित सम्पादक आचार्य ज्ञानसागरजी द्वारा रचित तृतीय पुष्य - तीर्थ प्रवर्तक मुनिश्री सुधासागरजी महाराज के प्रवचनों का संकलन चतुर्थं पुष्प .. जैन राजनैतिक चिन्तन धारा डॉ. श्रीमती विजयलक्ष्मी जैन पंचम पुष्प - अञ्जना पधनंजयनाटकम् संस्कृत भाषा में हम्तिमल दाग रचा गया है। जिसका
हिन्दी अनुवाद डॉ. रमेशचन्द जैन- बिजनौर द्वारा किया गया है । यह अनुवाद .. आधुनिक हिन्दी सरल भाषा में किया गया हैं।
अस्तु ।
अरुण कुमार शास्त्री,
ब्यावर