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________________ प्रथमा - प्रथमा - पषनंजय - जैसा आप कहें । दोनों वैसा ही करते है। (प्रवेश करके), मधुकरिका - मालसिके । (प्रवेश करके), प्रभवन पालिका- (राजकुमारी अंजना की नाटक सूत्रधारिणी पधुकरिका मुझे क्यों बुला रहो है) (समीप में जाकर) सखि, मुझे क्यों बुला रही हो? प्रधमा - सखि, तुम शीघ्र कहाँ जा रही हो? द्वितीय - मुझे स्वामिनी मनोवेगाने आज्ञा दी है कि पुत्री अंजना का कल स्वयंवर है। अत: औषधिमाला को गूंथने के लिए संतान प्रमुख विकासोन्मुक मङ्गल पुष्यों को चुनकर लाइए । प्रथमा - सखी, इसे रहने दो । यहाँ पर तुमने राजकुमारी अंजना को देखा ? द्वितीया - मरिख । वह प्रियसखी वसन्तमाला के साथ केलीवन में संगीतशाला में प्रविष्ट हो गई है। तो मैं जाती हूँ। द्वितीया - सखि ! जरा ठहरो 1 फिर से जाना सम्भव है । प्रथमा - सखि ! क्या ? द्वितीया - सखि, तुम क्या मानती हो । कौन महाभाग्यशाली इस माला को धारण करेगा? यहाँ विचार क्या करना ? तीनों लोकों में जिसका विशेष रूप सौभार प्रशंसनीरा है, ऐमा प्रह्लाद का पुत्र पवनंजय यहाँ समर्थ है। द्वितीया - सखी, मैंने भी यहीं सोचा था । चन्द्र हो सौदनी के योग्य है । विदूषक - मित्र सुनो, सुनो। जैसा मैंने कहा था, वैसा ही ये दोनों कर रही हैं। पवनंजय - कौन निश्चय करने में समर्थ है । भाग्यों का परिपाक जानना कठिन है । प्रथमा - सरिन, तुम जाओ । मैं भी राजकुमारी की समीपवर्तिनी होती हूँ । द्वितीया - वैसा ही होगा । (चली जाती है। मथुकरिका - जब तक मैं केलीवन को जातो हूँ । घूमती है) पवनंजय - मित्र, हम भी बिना दिखाई दिए इसके पीछे चलते है । विदूषक - लो इधर आइए, इधर (दोनों घूमते हैं। मधुकरिका - यह वन है, तो प्रवेश करती हूँ। (अनन्तर अञ्जना और सखी प्रवेश करती हैं) अंजना - हे मावो वसन्तमाला, तुम चुप क्यों बैठी हो । कुछ कहो । वसन्तमाला - यदि यह बात है तो सुनने योग्य सुनी । अंजना - (मन ही मन) में सावधान हूँ। घसन्तमाला - विजयाई के छोर पर विद्याधर लोक में अप्रतिम शोभा वाला आदित्यपुर नामक नगर है । उसमें समस्त विद्याधरों के द्वारा धारण किए गए चरणों वाले प्रह्लाद नामक सजर्षि हैं। उसके वसुमतो (पृथ्वी) के साथ दूसरी पत्नी केतुमती है । वसन्तमाला - उन दोनों का विद्याधर लोक की प्रशंसा का एक स्थान भूत पवनंजय नामक पुत्र है।
SR No.090049
Book TitleAnjana Pavananjaynatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size1 MB
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