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हाथी का मद उत्तारने की घटना 'सरण्यापुर' नामक स्थान में घटित हुई थी और वहाँ की राजसभा में ही उन्हें सत्कृत किया गया था । इस स्थान का भी कोई पता नहीं है । या तो यह संततगम का ही दूसरा नाम होगा या फिर किसी कारण से पाण्डय राजा हस्तिमल के साथ कहीं गये होंगे और यहां यह घटना घटी होगी ।
कवि का मुलनिवासस्थान
ब्रह्ममूरि ने गोविन्दभट्ट का निवासस्थान गढिपनन बतलाया है और पं. के. भुजबलि शास्त्री के अनुसार यह स्थान तंजौर का दीपंगुडि नाम का स्थान है, जो पाण्डश्य देश में है। कर्नाटक का राज्य प्राप्त होने पर या तो ये स्वयं हो या उनका कोई वंशज कर्नाटक में आकर रहने लगा होगा और उसी की प्रीति से हस्तिमनन कर्नाटक को राजधानी में आ बसे होंगे।
ब्रह्मसूरि के बतलाये हुए गुटिपतन का ही उल्लेख हस्तिमल्ल ने विक्रान्त कौरव को प्रशस्ति में द्वीपंगुडि नाम से किया है । उसमें भी यहाँ के वृषभजिन के मन्दिर का उल्लेख है जिनके पादपोत या सिंहासनाए पाण्डयराजा के मुहट की सभा पड़तो थी । वपर्भाजन के उकरत मन्दिर को 'कुश-लवरचित' अर्थात् रामचन्द्र के पुत्र कुश और लत्र के द्वारा निर्मित बतलाया है।
हस्तिभल्ल का समय
अध्यपार्य नामक विद्वान ने अपने जिनेन्द्र कल्याणभ्युदय नामक प्रतिष्टापान में लिखा हैं कि मैंने यह ग्रन्थ वसुनन्दि, इन्द्रनन्दि, आशाघर और हस्तिमल्ल आदि की रचनाओं का सार लेकर लिखा है और उक्त ग्रन्थ श. सं. 1241 (वि. सं. 1316) में ममाप्त हुआ था। अतएव हस्तिमत्त 1316 से पहले हो चुके थे।
ब्रह्ममुरि ने अपनी जो वंशपरम्परा दी है, उसके अनुसार हस्तिमल्ल उनके पितामह के पितामह थे । यदि एक एक पीढ़ी के पच्चीस पच्चीस वर्ष गिन लिये जोय, तो हस्तिमल्ल उनसे लगभग सौ वर्ष पहले के हैं और पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार ब्रह्मसूरि को विक्रम की पन्द्रहों शताब्दि का विद्वान् मानते हैं, अतएव हस्तिमल्ल को विक्रमकी चौदहवीं शतालि, का विद्वान् मानना चाहिए ।।
कांटक कविचरित्र के कर्ता आर. नरसिंहाचार्य ने हरितमल्ल का समय ई. सन् 1290 अर्थात् वि. सं. 134B निश्चित किया है, और यह ठीक मालूम होता है ।
ग्रन्थ-रचना
हस्तिमल्ल के अभीतक चार नाटक प्राप्त हुए हैं । विक्रान्तकौरव, 2 मैथिलीकल्याणप. 3 अञ्जनापवनंजय 4 सुभद्रा । इनमें से पहले दो प्रकाशित हो चुके हैं।
इनके सिवाय 1 उदयनराज, ? भरतराज, 3 अर्जुनराज, और 4 मेघेश्वर इन चार नाटकों का उल्लेख और मिलता है । इनमें से भरतराज सुभद्रा का हो दूसरा नाम मालुम होता है । शेष तीन नाटक दक्षिण के भंडारों में खोज करने से मिल सकेंगे । 'प्रतिष्ठा तिलक' नाम का एक और ग्रन्थ आश के जैन सिद्धान्त-भवन में है । यद्यपि इस ग्रन्थ में कहीं हस्तिमन्ल का नाम नहीं दिया है परन्तु अय्यपार्य ने अपने जिनेन्द्र कल्याणाभ्यूदय में जिन जिनके प्रतिष्ठानों