SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कवि के भाई कवि के जो पांच भाई थे, उनसे हम प्रायः अपरिचित हैं। सत्यवाक्य को हस्तिमल्ल ने ' श्रीमती कल्याण' आदि कृतियों का कत्र्ता बतलाया है, परन्तु उनका न तो यह ग्रन्थ ही अभी तक प्राप्त हुआ है और अन्य कोई ग्रन्थ ही नाम से ऐसा मालूम होता है कि 'श्रीमतीकल्याण' भी बहुत करके नाटक होगा । श्रीकुमार आत्मा एकहो है, परन्तु वे हस्तिमल्ल के बड़े भाई हैं या कोई और, इसका निर्णय नहीं हो सका । वर्धमान कवि को कुछ लोगों ने गणरत्नमहोदधि का ही कर्त्ता समझ लिया है किन्तु यह भ्रम है। गणरत्न के कर्त्ता श्वेतांबर सम्प्रदाय के हैं और उन्होंने सिद्धराज जयसिंह (वि. सं. 1151 12003 की प्रशंसा में कोई काव्य बनाया था । दिगम्बर सम्प्रदाय पर इन्होंने कटाक्ष भी किये हैं, और वे हस्तिमल्ल से बहुत पहले हुए हैं । कवि का नाम हस्तिमल्ल का असली नाम क्या था, इसका पता नहीं चलता । यह नाम तो उन्हें एक मत हाथी को वश में करने के उपलक्ष्य में पाण्डय राजा के द्वारा प्राप्त हुआ था। उस समय उन का राजसभा में सैकड़ों प्रशंसा वाक्यों से सत्कार किया गया था। इस हस्ति युद्ध का उल्लेख कवि ने अपने सुभद्राहरण नाटक में भी किया है। और साथ ही यह भी बतलाया हैं कि कोई भूतं जैनमुनि का रूप धारण करके आया था और उसको भी हस्तिमल्ल ने परास्त कर दिया था । पाण्ड्यमहीश्वर हस्तिमल्ल ने पाण्डव राजा का अनेक जगह उल्लेख किया है। वे उनके कृपापात्र थे और उनकी राजधानी में अपने विद्वान् आप्तजनों के साथ जा बसे थे । राजा ने अपनी सभा में उन्हें खूब ही सम्मानित किया था। ये पाण्ड्यमीश्वर अपने भुजबल से कर्नाटक प्रदेशपर शासन करते थे । कवि ने इन पाण्डय महीश्वर का कोई नाम नहीं दिया है। सिर्फ इतना ही मालूम होता है कि वे थे तो पाण्डध देश के राजवंश के, परन्तु कर्नाटक आकर राज्य करने लगे थे । दक्षिणकर्नाटक के कार्कल स्थान पर उन दिनों पाण्डघवंश का ही शासन था । यह राजवंश जैनधर्म का अनुयायी था और इसमें अनेक विद्वान् तथा कलाकुशल राजा हुए हैं। 'भव्यानन्द' नामक सुभाषित ग्रन्थ के कर्ता भी अपने को 'पाण्डयक्ष्मापति' लिखते हैं, कोई विशेष नाम नहीं देते। हमारी समझ में ये हस्तिमल्ल के आश्रयदाता राजा के ही वंश के अनन्तरवर्ती कोई जैन राजा थे और इन्होंने ही शायद श. सं. 1353 (वि. सं. 1488) में कार्कल की विशाल बाहुबलि प्रतिमाकी प्रतिष्टा कराई थी । पाण्ड्यमहीश्वर की राजधानी मालूम नहीं कहां थी । अञ्जना पत्रनंजय के 'श्रीमत्पाण्ड्यमहीश्वरेण' आदि पद्म से तो ऐसा मामूल होता है कि संतरनम या संततगम नामक स्थान में हस्तिमल्ल अपने कुटुम्बसहित जा बसे थे, इसलिए यह उनकी राजधानी होगी, यद्यपि यह पता नहीं कि यह स्थान कहाँ पर था ।
SR No.090049
Book TitleAnjana Pavananjaynatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy