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भयर आज्ञा-९
समय किसी को प्रतीक्षा नहीं करता । अश्विन सुनी प्रतिपदा का दिन उदिन हमा। मल्लिपुर के प्रवेश द्वार से देवी के मन्दिर पर्यन्त सुशृङ्गारित सजाया मार्ग लोगों की भीड से भर गया प्रतीत हो रहा था । दूर-दूर के हजारों लोग यात्रा के लिए ग्रा-आकर जमा हो रहे थे। मन्दिर के सामने वाले विशाल भू प्रांगण में सैंकड़ो बैलगाड़ियां खड़ी थी। प्रत्येक गाड़ी के पास एक-दो बकस का बच्चा बंधा दिख रहा था । जिनकी मनौतियां पूरी हो गई थ* लहसक्तीन, कई दश करे बांध कर आनन्द ले बैठे हुए थे। इस प्रकार बकरों का खासा बाजार दिखने लगा। प्रत्येक गाड़ी के पास, वृक्षों की छाया में, पत्थर के चूल्हे बना-बना कर लोक भोजन करनेबनाने में जुटे हुए थे । कारण कि यह उत्सव का प्रथम दिवस था। दस बजे देवी को नैवेद्य देने के लिए सबको इकट्ठा होना था। इन नवरात्रि के नौ दिनों में प्रतिदिन नवीन-नवीन, तरह-तरह के पक्वान्न चबाये जाते थे । अन्तिम दशवे दिन में पशुबलि चढाकर यात्रा पूरी होती थी । यह क्रम था देवो पूजा का।
यात्रा प्रारम्भ होते ही प्राप्त: ठीक ६ बजे देवी की पूजा कर आरती होती और बहुत से यात्री यात्रा कर मण्डप में दर्शनों के लिए समन्वित हो जाते। उत्सव का यह प्रथम ही दिवस था । पूजा की घण्टी वजो । झांझ बज उठी । सहनाई का मधुर स्वर सब दर्शकों का मन आकपित करने लगा 1 धोरे-धीरे यात्रीगण दर्शन कर मण्डप में बैठने लगे । थोडे ही समय में मन्दिर पुरा खचाखच भर गया । देवी को सुन्दर वस्त्र और अमूल्य सुन्दर आभूषणों से भले प्रकार सजा कर तैयार किया गया था । एक घण्टे लगातार पूजा हुई। उसके बाद आरती शुरू हुई । लोग एक दूसरे को हटाते, प्रारती सुनगुनाते भक्तिपूर्वक देवी की और मानन्द से देख रहे थे।
आरती भी पूरी हुयी । वाद्यों की झंकार बन्द हुयी। सभी ने देवी मां को नमस्कार किया। ठीक उसी समय महाद्वार से एक तेजस्वी तरूण