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अहिंसा को विजय]
मैं कारण ! आपके दुःख का मैं कारण ! मुझे आपके बोलने का कोई अर्थ ही समझ में नहीं पा रहा ।” ऐसा कह कर वह और अधिक असमंजस में पड़ गया। राजकन्या का परिचय हुए बिना, देखे बिना वह उसके दुःख का कारण किस प्रकार हो गया यह उसे कुछ भी समझ में नहीं पाया।
मान प्रस्तावको और 4 : महन्द्र ने घर दृष्टि डाली। उन्हें जाने की जल्दी है यह पहिचान कर-देखकर मृगावती शीघ्र ही बोली, "आप आचार्य श्री को प्रतिज्ञा पूर्ण करने के लिए। ..........
"हाँ प्रयत्न करने वाला हूँ।" महेन्द्र ने उसका वाक्य पूरा करते हुए कहा, "क्या यह अघोर हिंसा ऐसे ही चलेगी, ? ऐसा प्रापको रुचता है क्या ? आपको पसन्द है क्या, यह भयंकर हिंसाकाण्ड ?
"इस हिंसा को आप न रोकें ऐसा मेरा अभिप्राय नहीं । परन्तु प्राप इस हिंसा की रोक थाम के लिए नरयज्ञ प्रारम्भ कर दूसरे प्रकार की हिंसा नहीं करने वाले हैं ?" मृगावती गम्भीर मुद्रा कर बोली ।
"मायणे"? महेन्द्र आश्चर्य प्रकट करता हा बोला। "आप इस हिंसा काण्ड को रोकने के लिए मेरे पिता के साथ युद्ध करने वाले हैं न ?" मेरे वृद्ध पिता पर इस प्रकार का संकट न आये यही मेरी आकांक्षा है । आपके समान ही मैं देख रही हूं यह पापकर्म थांवना अनिवार्य है, परन्तु आप मेरे पिता के साथ युद्ध नहीं करेंगे ऐसा मुझे वचन देना चाहिए । " उसका कण्ठ रुद्ध हो गया । गद् गद् स्वर में यह पुनः बोली मिलेगा न आप से यह वचन ?
राजकन्या कहाँ गलती कर रही हैं, उसकी गैर समझ क्यों हैं. अब महेन्द्र को ध्यान में पाया । मैने महाराज श्री के पास जो बातें की बे आधी ही इसने सूनी हैं इसीलिए. युद्ध करना मेरा निश्चय है, यह समझ बैठी है। इसी कारण इस प्रकार यह बोल रही है । यह महेन्द्र को समझ में आ गया । अत: इस अवसर से लाभ उठाना चाहिये ऐसा विचार कर वह बोला
ठीक है, यदि आप इस कर्म को रोकने का प्रयत्न करोगी तो युद्ध कभी नहीं होगा यह निश्चय समझे।"
महेन्द्र ने जिस समय युद्ध नहीं करने का वचन दिया उस समय मृगा