________________
२२]
[अहिंसा की विजय
का मार्ग था, बहीं जाकर रथ खड़ा हो गया। पहाड भी कोई अधिक ऊँचा नहीं था । नीचे तलहटी से ऊपर तक पत्थर की सीढियां बनी हुई थीं । इस
मार्गदर्शक :- आचार्य
SM
..
.
लिए ऊपर जाने-आने में कोई अधिक कष्ट नहीं होता था 1 मृगावती और मुरादेवी पहाड़ पर प्राराम से चढ़ गई । वहां से नीचे की ओर देखने पर सामने ही घूम कर मल्लिपुर नगर दिखता था, वहां के ऊंचे-ऊँचे महलमकान राजवाड़ा बड़े ही सुहावने लाते थे। मन्दिरों के शिखर अनोखे भासते थे। दुसरो श्रार देवी का मन्दिर, उसके सामने विशाल मैदान, दूसरों और हरा-भरा मैदान वह सब देखकर मृगावती को बहुत ही आनन्द हुआ। मैं आज तक कभी इस रमणीक पहाड़ पर नहीं प्रायो, आज तक मुझे इस अपूर्व सौन्दर्य से वंचित रहना पड़ा यह विचार कर उसे कुछ नेद भी हुआ । इतनी स्वाभाविक शोभा देखते-देखते वह जिनालय की ओर चली जा रही थी । वहाँ पूजा अभिषेक देखने को सैकड़ों लोग एकत्रित थे। यह मन्दिर सुन्दर काले पाषाण से निर्मित था । सामने का कुछ तट मात्र जीर्ण-शीर्ण हो पड़ गया था । सभा मण्डप के खम्भों और छत पर नाना प्रकार की नक्कासी-चित्रकारी सुन्दर ढह से उकेरी व चित्रित की गई थी। मृगावती ने यह मन्दिर आज तक कभी देखा ही नहीं था । नीचे से उसका टूटा-फटा,