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[अहिंसा की विजय परन्तु मृगावती ने माँ की मौनसम्मति ज्ञात कर पिता के पास इस विषय में . अनुमति-प्राज्ञा चाही।
गावती एक ही कन्या होने से संपका बहुत दुलारी थी । सबको अच्छी लगती थी। उसके मन के विरुद्ध प्रायः कुछ भी नहीं करता था। मृगावती प्रसन्न और सुखी रहे यही सबका सतत प्रयत्न रहता था । इस समय पहाडपर जाने की उसकी तीन इच्छा जानकर राजा के गले में भारी फन्दा पड गया । क्योंकि मगाबती का हठ उसे ज्ञात था । वह जब भी जिस काम की हठ पकडती उसे किये बिना नहीं रहती । इस बात का राजा को पूरा अनुभब था । यदि उसे उसकी इच्छा प्रमाण आज्ञा देता हूं तो कालीदेवी कुपित होगी, उसकी अनुकम्पा का भय उसके हृदय में नाचने लगा । पुन: विचार कर राजा ने, अतिप्रम से कन्या को अपने अङ्क में ले कहा 'मृगावती ! तू बाहर देवी के मन्दिर में हो जाती ही है, पहाड़ पर भला क्या है ? मात्र पहाड़ पर चढ़ने से तुझे बहुत त्रास होगा। इसलिए वहाँ नहीं जाना।" ठोक है पहाड पर जाने से त्रास होगा तो मार्ग में ही मुनिराज हैं उनके दर्शन कर या जाऊँगी ।" बीच में ही मृगावती बोली।
"देवी के सन्देश की बात महाराज ने किसी से भी नहीं कही थी। इससे मृगावती को यह मालूम नहीं था कि मुनिदर्शन का कोई प्रतिबन्ध हो सकता है । अतः उसने सहज ही यह भाव प्रकट किया । राजा ने उसके मुख से मुनिदर्शन को इच्छा शब्द सुना तो सन्न रह गया । क्योंकि उसे विश्वास था, यदि मुगाबती मुनिदर्शन को गई तो देवी का अवश्य प्रकोप होगा । वह कुपित हुए बिना रह नहीं सकती । यह भय उसे खा रहा था। वही सोचकर वह कन्या को पहाड पर भी भेजने को तैयार नहीं था । परन्तु उसने जबर्दस्त हठ पकड़ कर एक कठिन समस्या उपस्थित करदी थी। मृगावती के प्रयन से राजा में द्वैदीभाव जाग उठा । उसका कहना यथार्थ था, "पहाड पर जाने से त्रास होगा तो मुनि दर्शन को जाने दो उसमें तो कष्ट नहीं है।" ये दोनों बात टालने को नहीं हो सकती । यही विचार कर राजा बोला, बेटी तेरी इच्छा पहाड पर पूजा देखने की है तो जा मेंरा कोई विरोध नहीं है। परन्तु वहां मुनिदर्शनों को जाने का कोई काम नहीं । क्योंकि उस प्रकार के नग्न मुनि का दर्शन करने से और उनका उपदेश सुनने से अवश्य ही कालीदेवी का कोप होगा। और उस कारण से
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