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{ अहिंसा की विजय राजा को अधिक समय संशय में नहीं रखते हुए पुरोहित जी बोले, "महाराज कत्ल-पिछली रात्रि में देवी जी के मुत्र से ऐसी वाणी निकली कि राजघराने में कोई बहुत बड़ा संकट बहुत शीघ्र आने वाला है। पुरोहित के मुख से देवी की शब्दावली सुनते ही राजा भय से कांप उठा, चेहरा फोका पड़ गया आश्चर्य से वेतहाश हो पुरोहित जी की ओर पाकुलित नेत्रों से देखने लगा । मानों सचमुच ही कोई वज्रपात होने वाला हो । उसका चेहरा बिल्कुल उतर गया। मुख से एक शब्द भी नहीं निकला मानो आजीव चित्रित मूति हो । अचल गुम-सुम रह गया। उसकी इस दशा को देखकर पुरोहितजी पुन: बोट, राजन् इतन, भतार हो अधीर होने की कोई बात नहीं । क्योंकि आने वाला संकट आयेगा ही, या कब आयेगा, उसका स्वरूप क्या है ? उसके निवारण का उपाय क्या है ? इसका देवी ने कोई स्पष्टीकरण नहीं किया है । अस्तु, अाप वहाँ स्वयं आकर, पूजा करके अच्छी तरह देवी से विचार कर पूछना चाहिए । क्योंकि स्वयं देवी आपको संकट निवारण का उपाय भी बतायेगी। "यही कहने को मैं आपके पास आया हैं।" अब आप जानें।
पुरोहित ने यह सान्त्वना के रूप में कहा । किन्तु राजा को इससे जरा भी समाधान नहीं मिला । मैं कब देवी के पास जाऊँ, कब पूजा करूं और किस प्रकार शीघ्रातिशीघ्र संकट का स्वरूप और उसके निवारण का उपाय देवी से पूछ कर निश्चय करूं यह कलबलो उसे सताने लगी। पुरोहित राजा को व्याकुल कर चलता बना 1
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हिंसा से प्रात्मा का पतन ___ होता है, इससे बचना चाहिए ।
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