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## Adipurana **Verse 14:** The deer, their necks stretched out, were adorned by the sweet songs of the Kinnaras on the banks. **Verse 145:** The heart-warming sounds of the Sarasas, like divine women, with their swaying hips, seemed to be laughing. **Verse 146:** With fourteen thousand tributaries, she appeared like a friend, her arms raised in embrace. **Verse 147:** The Lord saw her, her splendor unveiled, like a garland offered to the ocean by the Himalayas. **Verse 148:** The king Bharat, seeing the Ganga, like a young woman, her beauty enhanced by autumn, adorned with the forests on her banks, her hips like sand dunes, her navel a deep whirlpool, experienced unparalleled joy. **Verse 149:** The Ganga, fragrant with the nectar of lotuses, her gentle swaying caused by the trembling leaves of the forest on her banks, her waves constantly stirred by the divine ocean, the wind carrying away the weariness of the king's wives.
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________________ आदिपुराणम् हारिभिः किन्नरोगीतैराहता हरिणागनाः। दधतीं तीरकच्छेषु प्रसारितगलगलाः ॥१४॥ हृद्यः ससारसारावैः पुलिनैर्दिव्ययोषिताम् । नितम्बानि सकाचीनि हसन्तीमिव विस्तृतैः ॥१४५|| चतुर्दशभिरन्वितां सहस्ररब्धियोषिताम् । "सद्धीचीनामिवोहीचिं बाहूनां परिरम्भणे ॥१४६।। इन्याविष्कृतसंशोभा जाहीमैक्षत प्रभुः। हिमवदगिरिणाम्भोधेः प्रहितामिव कण्टिकाम् ।।१४।। मालिनीवृत्तम शरदुप हितकान्ति प्रान्तकान्तारराजी विरचितपरिधानां सैकतारोहरम्याम् । युवतिमिव गभीरावर्तनाभिं प्रपश्यन् प्रमदमतुलमूहे क्ष्मावतिः स्वःस्रबन्तीम् ॥१४॥ सरसिजमकरन्दोद्गन्धिराधूतरोधो वनकिसलयमन्दा दोलनोदूढमान्द्यः । असकृदमरसिन्धोराधुनानस्तरङगा नहृत नृपवधूनामध्वखेदं समीरः ॥१४६॥ सुन्दर थी। जो चंचल लहरोंरूपी हाथोंसे स्पर्श किये गये और अंकुररूपी रोमांचोंको धारण किये हुए अपने किनारेके वनके वृक्षोंसे आश्रित थी और उससे ऐसी मालूम होती थी मानो कामी जनोंसे आश्रित कोई स्त्री ही हो । - जो जलकणोंसे उत्पन्न हुए तथा चारों ओर फैलते हुए मनोहर शब्दोंसे अपनी इच्छानुसार किनारेपर-के लतागृहोंमें बैठे हुए देव-देवांगनाओंकी हँसी करती हुई-सी जान पड़ती थी। किन्नरोंके मधुर शब्दवाले गायन तथा वीणाकी झनकारसे सेवनीय किनारेकी पृथिवीपर बने हुए लतागृहोंसे जो बहुत ही अधिक सुशोभित हो रही थी। - किन्नर देवोंके मनोहर गानोंसे बुलायी हुई और सुखसे ग्रीवाको लम्बा कर बैठी हुई हरिणियोंको जो अपने किनारेकी भूमिपर धारण कर रही थी। - जिनपर सारस पक्षी कतार बाँधकर मनोहर शब्द कर रहे हैं ऐसे अपने बड़े-बड़े सुन्दर किनारोंसे जो देवांगनाओंके करधनीसहित नितम्बोंकी हँसी करती हुई-सी जान पड़ती थी। - जिन्होंने आलिंगन करने के लिए तरंगरूपी भुजाएँ ऊपरकी ओर उठा रखी हैं ऐसी सखियोंके समान जो चौदह हजार सहायक नदियोंसे सहित है। - इस प्रकार जिसकी शोभा प्रकट दिखाई दे रही है और जो हिमवान् पर्वतके द्वारा समुद्रके लिए भेजी हुई कण्ठमालाके समान जान पड़ती है ऐसी गंगा नदी महाराज भरतने देखी ॥ १२९-१४७ ॥ शरदऋतुके द्वारा जिसकी कान्ति बढ़ गयी है, किनारेके वनोंकी पंक्ति ही जिसके वस्त्र हैं, जो बालूके टोलेरूप नितम्बोंसे बहुत ही रमणीय जान पड़ती हैं, गम्भीर भंवर ही जिसकी नाभि है और इस प्रकार जो एक तरुण स्त्रीके समान जान पड़ती है ऐसी गंगा नदीको देखते हुए राजा भरतने अनुपम आनन्द धारण किया था ॥ १४८ ॥ जो कमलोंकी मकरन्दसे सुगन्धित है, कुछ-कुछ कम्पित हुए किनारेके वनके पल्लवोंके धीरे-धीरे हिलनेसे जिसका मन्दपना प्रकट हो रहा है और जो गंगा नदीको तरंगोंको बार-बार हिला रहा १ तीरवनेषु । २ प्रसारितो भूत्वा सुखातिशयेनाधो गलद्गलो यासां ताः। ३ सखीनाम् । ४ वीचिबाहूनां ल० । ५ गंगाम् । ६ प्राप्त । ७ सैकतनितम्ब ।'
SR No.090011
Book TitleAdi Puran Part 2
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2011
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size21 MB
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