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## English Translation:
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**Twenty-fifth Chapter**
**Dhikasā** (one who wears garments of the directions) **Vātarashana** (one who wears the wind as his garment) **Nirgranthēsha** (master of the Nirgrantha monks) **Niranbara** (one who is without clothes) **Nishkinchana** (one who is without possessions) **Nirāshansa** (one who is without desires) **Jñānachashu** (one who has the eye of knowledge) **Amomuha** (one who is free from delusion) ||20||
**Tejorāshi** (one who is a mass of brilliance) **Anantauja** (one who has infinite power) **Jñānābdhi** (one who is an ocean of knowledge) **Shīlasāgara** (one who is an ocean of conduct) **Tejomaya** (one who is made of brilliance) **Amitajyoti** (one who has infinite light) **Jyotirmoorti** (one who is a form of light) **Tamopāha** (one who destroys the darkness of ignorance) ||205||
**Jagachchūḍāmani** (the jewel of the universe) **Dīpta** (one who is radiant) **Shanvān** (one who is peaceful) **Vighnavināyaka** (one who destroys obstacles) **Kalighna** (one who destroys evil) **Karmashatrudhna** (one who destroys the enemies of karma) **Lokālokaprakāshaka** (one who illuminates the worlds and the beyond) ||206||
**Anidrālu** (one who is without sleep) **Atandrālu** (one who is without laziness) **Jāgarūka** (one who is always awake) **Pramāmaya** (one who is full of knowledge) **Lakshmipati** (the lord of Lakshmi) **Jagajyoti** (the light of the universe) **DharmaRāja** (the king of Dharma) **Prajāhita** (one who is benevolent to the people) ||207||
**Mumukṣu** (one who desires liberation) **Bandhamokṣajña** (one who knows the nature of bondage and liberation) **Jitākṣa** (one who has conquered the senses) **Jitamanmatha** (one who has conquered desire) **Prashāntarasashalūsha** (one who is like a dancer, displaying the peaceful essence of rasa) **Bhavyapetakanāyaka** (the leader of the assembly of the liberated) ||208||
**Mūlakartā** (the originator of Dharma) **Akhilajyotī** (one who illuminates all things) **Malagna** (one who destroys the impurities of karma) **Mūlakāraṇa** (the primary cause of liberation) **Āpta** (one who speaks the truth) **Vāgīshvara** (the lord of words) **Shreyān** (one who is auspicious) **Shrāyasokti** (one who speaks auspicious words) **Niruṭkavāk** (one who speaks meaningful words) ||20||
Those who are very vast are called **Prathīyān** (898), those who are famous are called **Prathita** (899), and those who are great in terms of knowledge and other qualities are called **Pṛthu** (900) ||20||
**Digvāsā** (901) is called so because they wear garments of the directions, **Vātarash
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६२७
पञ्चविंशतितमं पर्व दिखासा वातरशनो निर्ग्रन्थेशो निरम्बरः । निष्किञ्चनो निराशंसो' ज्ञानचक्षुरमो मुहः ॥२०॥ तेजोराशिरनन्तौजा ज्ञानाब्धिः शीलसागरः । तेजोमयोऽमितज्योतिज्योतिर्मूर्तिस्तमोपहः ॥२०५॥ जगच्चूडामणिर्दीप्तः शंवान् विघ्नविनायक: । कलिघ्नः कर्मशत्रुध्नो लोकालोकप्रकाशकः ॥२०६॥ अनिद्रालुरतन्द्रालुर्जागरूकः प्रमामयः । लक्ष्मीपतिर्जगज्योतिर्धर्मराजः प्रजाहितः ॥२०७॥ मुमुक्षुर्वन्धमोक्षज्ञो जिताक्षो जितमन्मथः । प्रशान्तरसशैलूषो भव्यपेटकनायकः ॥२०८॥ मूलक खिलज्योतिर्मलघ्नो मूलकारणम् । आप्तो वागीश्वरः श्रेयान् श्रायसोक्कि निरुकवाक ॥२०॥
अत्यन्त विस्तृत होनेसे प्रथीयान् ८९८, प्रसिद्ध होनेसे प्रथित ८९९ और ज्ञानादि गुणोंकी अपेक्षा महान् होनेसे पृथु ९०० कहलाते हैं ॥२०॥
दिशारूप वस्त्रोंको धारण करने-दिगम्बर रहनेसे दिग्वासा ९०१, वायुरूपी करधनीको धारण करनेसे वातरशन ६०२, निम्रन्थ मुनियोंके स्वामी होनेसे निर्ग्रन्थेश १०३, वस्त्ररहित होनेसे निरन्बर ६०४, परिग्रहरहित होनेसे निष्किञ्चन १०५, इच्छारहित होनेसे निराशंस ६०६, ज्ञानरूपी नेत्रके धारक होनेसे ज्ञानचक्षु ९०७ और मोहसे रहित होनेके कारण अमोमुह ६०८ कहलाते हैं ।।२०४॥ तेजके समूह होनेसे तेजोराशि ६०६, अनन्त प्रतापके धारक होनेसे अनन्तौज ९१०, ज्ञानके समुद्र होनेसे ज्ञानाधि १११, शीलके समुद्र होनेसे शीलसागर ९१२, तेजःस्वरूप होनेसे तेजोमय ६१३, अपरिमित ज्योतिके धारक होनेसे अमितज्योति ११४, भास्वर शरीर होनेसे ज्योतिर्मूर्ति ६१५ और अज्ञानरूप अन्धकारको नष्ट करनेवाले होनेसे तमोऽपह ६१६ कहलाते हैं ।।२०५।। तीनों लोकोंमें मस्तकके रत्नके समान अतिशय श्रेष्ठ होनेसे जगच्चूड़ामणि ६१७, देदीप्यमान होनेसे दीप्त ६१८, सुखी अथवा शान्त होनेसे शंवान् ६१६, विघ्नोंके नाशक होनेसे विघ्नविनायक ९२०, कलह अथवा पापोंको नष्ट करनेसे कलिघ्न ९२१, कर्मरूप शत्रुओंके घातक होनेसे कर्मशत्रुघ्न ६२२ और लोक तथा अलोकको प्रकाशित करनेसे लोकालोकप्रकाशक ६२३ कहलाते हैं । २०६ ॥ निद्रा रहित होनेसे अनिन्द्रालु ९२४, तन्द्रा-आलस्यरहित होनेसे अतन्द्रालु ६२५, सदा जागृत रहनेसे जागरूक ९२६, ज्ञानमय रहनेसे प्रमामय ९२७, अनन्त चतुष्टयरूप लक्ष्मीके स्वामी होनेसे लक्ष्मीपति १२८, जगत्को प्रकाशित करनेसे जगज्योति ९२९, अहिंसा धर्मके राजा होनेसे धर्मराज ९३०
और प्रजाके हितैषी होनेसे प्रजाहित ३१ कहलाते हैं ॥२०७॥ मोक्षके इच्छुक होनेसे मुमुक्षु ९३२, बन्ध और मोक्षका स्वरूप जाननेसे बन्ध मोमा ३३, इन्द्रियोंको जीतनेसे जिताक्ष ६३४, कामको जीतनेसे जितमन्मथ ९३५, अत्यन्त शान्तरूपी रसको प्रदर्शित करनेके लिए नट के समान होनेसे प्रशान्तरसशैलूष ९६६ और भव्यसमूहके स्यामी होनेसे भव्यपेटकनायक ९३७ कहलाते हैं ॥२०८।। धर्मके आधवक्ता होनेसे मूलकर्ता ९३८, समस्त पदार्थों को प्रकाशित करनेसे अखिलज्योति ९३९, कर्ममलको नष्ट करनेसे मलघ्न ६४०, मोक्षमार्गके मुख्य कारण होनेसे मूलकारण ६४१, यथार्थवक्ता होनेसे आप्त ६४२, वचनोंके स्वामी होनेसे वागीश्वर ६४३, कल्याणस्वरूप होनेसे श्रेयान् ६४४, कल्याणरूप वाणीके होनेसे श्रायसोक्ति ६४५ और सार्थकवचन होनेसे निरुक्तवाक् ६४६ कहलाते हैं ।।२०।। श्रेष्ठ वक्ता होनेसे
१. निराशः । २. भृशं निहिः। ३. आदित्यः । ४. शं सुखमस्यास्तोति । ५. अन्तरायनाशकः । ६. दोषघ्नः । ७. जागरणशोलः । ८. ज्ञानमयः । ९. उपशान्तरसनर्तकः । १०, समूह । ११. जगज्ज्योतिः । १२. प्रशस्तवाक ।. . #yiy! :