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The Adi Purana states that Siddha is:
* **Siddhi-da:** Giver of Siddhi (perfection)
* **Siddha-sankalpa:** One whose every resolve is fulfilled
* **Siddha-atma:** One whose soul has attained the state of Siddhi
* **Siddha-sadhana:** One who has attained the means of liberation (Samyak Darshan, Samyak Jnana, and Samyak Charitra)
* **Buddha-bodhya:** One who has known all that is knowable
* **Maha-bodhi:** One whose greatness is highly praiseworthy, possessing the three jewels (Ratnatraya)
* **Vardhaman:** One whose qualities continue to grow
* **Mahardhika:** One who possesses great powers
**146**
Siddha is also:
* **Vedanga:** The limb (cause) of the Vedas (Anuyoga)
* **Vedavit:** Knower of the Vedas
* **Vedya:** Knowable by the Rishis
* **Jatarupa:** One who is in the form of Digambar (sky-clad)
* **Vidavar:** The best among knowers
* **Vedavedha:** Knowable by the Agamas or Kevala Jnana
* **Swasamvedya:** Knowable through experience
* **Viveda:** One who is free from the three types of Vedas
* **Vadatavar:** The best among speakers
**147**
Siddha is further described as:
* **Anadinidhana:** One without beginning or end
* **Vyakta:** One who is completely clear through knowledge
* **Vyaktavaak:** One whose words are extremely clear
* **Vyaktasasana:** One whose rule is completely clear or manifest
* **Yugadhikrit:** The creator of the Yuga (era)
* **Yugadhara:** The sustainer of the Yuga
* **Yugad:** The beginning of the Yuga
* **Jagadad:** The origin of the world
**148**
Siddha is also:
* **Ateeindra:** One who has surpassed the Indras (kings of the gods) through his power
* **Ateeindriya:** One who is beyond the senses
* **Dheendra:** The master of intellect
* **Mahendra:** One who experiences supreme power
* **Ateeindriyarthadrik:** One who sees subtle, distant, and hidden objects
* **Anindriya:** One who is free from senses
* **Ahamindraya:** One who is worshipped by the Indras
* **Mahendramhita:** One who is worshipped by the great Indras
**Notes:**
1. **Bodhya:** Knowable, one who is worthy of being known
2. **Vardhaman:** One who is prosperous, rich, and has great wealth
3. **Vedajnapak:** One who reveals the Vedas
4. **Agamenya:** Knowable through the Agamas
5. **Ateeindra:** One who surpasses the Indras in power
6. **Ateeindriya:** One who transcends the senses
7. **Poojadhip:** One who is the master of worship
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आदिपुराणम् सिद्विदः सिद्धसंकल्पः सिद्धारमा सिद्धसाधनः । बुद्धबोध्यो महाबोधिर्वर्धमानो' महर्धिकः ॥१५॥ वेदाङ्गो वेदविद् वेद्यो जातरूपो विदांवरः । वेदवेधः स्वसंवेद्यो विवेदो वदतां वरः ॥१४६॥ अनादिनिधनो व्यक्तो व्यक्तवाग व्यक्तशासनः । युगादिकृद् युगाधारो युगादिर्जगदादिजः ॥१४॥ 'अतीन्द्रोऽतीन्द्रियो धीन्द्रो महेन्द्रोऽतीन्द्रियार्थहक् । अनिन्द्रियोऽहमिन्द्रार्यो महेन्द्रमहितो महान् ॥ आप पुण्डरीकाक्ष ४०६ कहलाते हैं, आत्म-गुणोंसे खूब ही परिपुष्ट हैं इसलिए पुष्कल ४०७ कहे जाते हैं और कमलदलके समान लम्बे नेत्रोंको धारण करनेवाले होनेसे पुष्करेक्षण ४०८ कहे जाते हैं ॥१४४॥ सिद्धिको देनेवाले हैं इसलिए सिद्धिद ४०९ कहलाते हैं, आपके सब संकल्प सिद्ध हो चुके हैं इसलिए सिद्धसंकल्प ४१० कहे जाते हैं, आपकी आत्मा सिद्ध अवस्थाको प्राप्त हो चुकी है इसलिए सिद्धात्मा ४११ कहलाते हैं, आपको सम्यग्दर्शन, सम्यरज्ञान और सम्यक्चारित्ररूपी मोक्ष-साधन प्राप्त हो चुके हैं इसलिए आप सिद्धसाधन ४१२ कहलाते हैं, आपने जानने योग्य सब पदार्थोंको जान लिया है इसलिय बुद्धबोध्य ४१३ कहे जाते हैं, आपको रत्नत्रयरूपी विभूति बहुत ही प्रशंसनीय है इसलिए आप महाबोधि ४१४ कहलाते हैं, आपके गुण उत्तरोत्तर बढ़ते रहते हैं इसलिए आप वर्धमान ४१५ हैं, और बड़ीबड़ी ऋद्धियोंको धारण करनेवाले हैं इसलिए महर्द्धिक ४१६ कहलाते हैं ॥१४५।। आप अनुयोगरूपी वेदोंके अंग अर्थात् कारण हैं इसलिए वेदांग ४१७ कहे जाते हैं, वेदको जाननेवाले हैं: इसलिए वेदवित् ४१८ कहलाते हैं, ऋषियोंके द्वारा जानने योग्य हैं इसलिए वेद्य ४१९ कहो जाते हैं, आप दिगम्बररूप हैं इसलिए जातरूप ४२० कहे जाते हैं, जाननेवालोंमें श्रेष्ठ हैं इसलिए विदावर ४२१ कहलाते हैं, आगम अथवा केवलज्ञानके द्वारा जानने योग्य हैं इसलिए वेदवेद्य ४२२ कहे जाते हैं, अनुभवगम्य होनेसे स्वसंवेद्य ४२३ कहलाते हैं, आप तीन प्रकारके वेदोंसे रहित हैं इसलिए विवेद ४२४ कहे जाते हैं और वक्ताओंमें श्रेष्ठ होनेसे वदतावर ४२५ कहलाते हैं।। १४६ ॥ आदि-अन्तरहित होनेसे अनादिनिधन ४२६ कहे जाते हैं, ज्ञानके द्वारा अत्यन्त स्पष्ट हैं इसलिए व्यक्त ४२७ कहलाते हैं, आपके वचन अतिशय स्पष्ट हैं इसलिए व्यक्तवाक् ४२८ कहे जाते हैं, आपका शासन अत्यन्त स्पष्ट या प्रकट है इस. लिए आपको व्यक्तशासन ४२९ कहते हैं, कर्मभूमिरूपी युगके आदि व्यवस्थापक होनेसे आप युगादिकृत् ४३० कहलाते हैं, युगकी समस्त व्यवस्था करनेवाले हैं, इसलिए युगाधार ४३१ कहे जाते हैं, इस कर्मभूमिरूप युगका प्रारम्भ आपसे ही हुआ था इसलिए आप युगादि ४३२ माने जाते हैं और आप जगतके प्रारम्भमें उत्पन्न हए थे इसलिए जगदादिज ४३३ कहलाते हैं ॥१४७॥ आपने अपने प्रभाव या ऐश्वर्यसे इन्द्रोंको भी अतिक्रान्त कर दिया है इसलिए अतीन्द्र ४३४ कहे जाते हैं, इन्द्रियगोचर न होनेसे अतीन्द्रिय ४३५ हैं, बुद्धिके स्वामी होनेसे धीन्द्र ४३६ हैं, परम ऐश्वर्यका अनुभव करते हैं इसलिए महेन्द्र ४३७ कहलाते हैं, अतीन्द्रिय (सूक्ष्म-अन्तरित-दूरार्थ ) पदार्थोंको देखनेवाले होनेसे अतीन्द्रियार्थदृक् ४३८ कहे जाते हैं, इन्द्रियोंसे रहित हैं इसलिए अनिन्द्रिय ४३९ कहलाते हैं, अहमिन्द्रोंके द्वारा पूजित होनेसे अहमिन्द्राय॑ ४४० कहे जाते हैं, बड़े-बड़े इन्द्रोंके द्वारा पूजित होनेसे महेन्द्रमहित ४४१
१. बोर्बु योग्यो बोध्यः, बुद्धो बोध्यो येनासो। २. वा विशेषेण ऋद्धं समृद्धं मानं प्रमाणं यस्य सः । ३. वेदज्ञापकः । ४. आगमेन ज्ञेयः । ५. अतिशयेनेन्द्रः । ६. इन्द्रियज्ञानमतिक्रान्तः । ७. पूजाधिपः ।