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________________ द्वाविंशं पर्व एकैकस्मिन्निकार्य स्युर्दश भेदाः सुरास्स्विमे । न्यन्तरा ज्योतिषचायस्त्रिंशलोकपवर्जिताः ॥३१॥ इन्द्रस्तम्बेरमः कीदृगिति चेत् सोऽनुवण्यते । तुङ्गवंशो महावर्मा सुवृत्तोमतमस्तकः ॥३२॥ बह्वाननो बहुरदो बहुदोर्विपुलासनः । "लक्षणैर्व्यञ्ज नैर्युक्तः 'सास्विको जवनो बली ॥३३॥ कामगः''कामरूपी च शूरः सद्वृत्तकन्धरः । "समसंबन्धनो धुर्यो' मधुस्निग्धरदेक्षणः ॥३४॥ "तिर्यग्लोलायतस्थूलसमवृत्तर्जुसत्करः । स्निग्धाताम्रपृथुस्रोतो दीर्घाडगुलिसपुष्करः ॥३५॥ वृत्तगात्रापरःस्थेयान्" दीर्घमेहनबालधिः । न्यूढोरस्को 'महाध्वानकर्णः “सत्कर्णपल्लवः ॥३६॥ अर्धेन्दुनिभसुश्लिष्टविद्रुमामनखोस्करः । सच्छायस्ताम्रतावास्यः शैलोदग्रो महाकटः ॥३७॥ . वराहजघनः"श्रीमान् दीर्थोष्टो दुन्दुमिस्वनः । सुगन्धिदीर्घनिःश्वासः सोऽमितायुः कृशोदरः" ॥३८॥ है उसीके अनुरूप उनके थोड़ी-सी ऋद्धियाँ होती हैं ॥३०॥ इस प्रकार प्रत्येक निकायमें ये ऊपर कहे हुए दश-दश प्रकारके देव होते हैं परन्तु व्यन्तर और ज्योतिषीदेव त्रायस्त्रिंश तथा लोकपालभेदसे रहित होते हैं ॥३१॥ अब इन्द्र के ऐरावत हाथीका भी वर्णन करते हैं-उसका वंश अर्थात् पीठपरकी हड्डी बहुत ऊँची थी, उसका शरीर बहुत बड़ा था, मस्तक अतिशय गोल और ऊँचा था। उसके अनेक मुख थे, अनेक दाँत थे, अनेक सूंड़ें थीं, उसका आसन बहुत बड़ा था, वह अनेक लक्षण और व्यंजनोंसे सहित था, शक्तिशाली था, शीघ्र गमन करनेवाला , बलवान था. वह इच्छानुसार चाहे जहाँ गमन कर सकता था, इच्छानुसार चाहे जैसा रूप बना सकता था, अतिशय शूरवीर था। उसके कन्धे अतिशय गोल थे, वह सम अर्थात् समचतुरस्र संस्थानका धारी था, उसके शरीरके बन्धन उत्तम थे, वह धुरन्धर था, उसके दाँत और नेत्र मनोहर तथा चिकने थे। उसकी उत्तम सूंड नीचेकी ओर तिरछी लटकती हुई चञ्चल, लम्बी, मोटी तथा अनुक्रमसे पतली होती हुई गोल और सीधी थी; पुष्कर अर्थात् सँडका अग्रभाग चिकना और लाल था, उसमें बड़े-बड़े छेद थे और बडी-बडी अंगुलियोंके समान चिह्न थे। उसके शरीरका पिछला हिस्सा गोल था, वह हाथी अतिशय गम्भीर और स्थिर था, उसकी पूंछ और लिंग दोनों ही बड़े थे, उसका वक्षःस्थल बहुत ही चौड़ा और मजबूत था, उसके कान बड़ा भारी शब्द कर रहे थे, उसके कानरूपी पल्लव बहुत ही मनोहर थे। उसके नखोंका समूह अर्ध चन्द्रमाके आकारका था, अंगुलियोंमें खूब जड़ा हुआ था और मूंगाके समान कुछ-कुछ लाल वर्णका था, उसकी कान्ति उत्तम थी। उसका मुख और तालु दोनों ही लाल थे, वह पर्वतके समान ऊँचा था, उसके गण्डस्थल भी बहुत बड़े थे । उसके जघन सुअरके समान थे, वह अतिशय लक्ष्मीमान् था, 'उसके ओठ बड़े-बड़े थे, उसका शब्द दुन्दुभी शब्दके समान था, उच्छवास सुगन्धित तथा दीर्घ था, उसकी आयु अपरिमित १. चतुनिकायेषु एकैकस्मिन्निकार्य । २. सुरा इमे ल०, म०, इ०, अ०। ३. त्रायस्त्रिशैः लोकपालश्च रहिताः। ४. 'ऐन्द्र' इति पाठान्तरम् । ऐन्द्रः इन्द्रसम्बन्धी। ५.बहकरः । ६. पृथुस्कन्धप्रदेशः । 'भासनः स्कन्धदेशः स्याद्' इत्यभिधानात् । ७. सूक्ष्मशुभचिह्नः। ८. आत्मशक्तिकः । ९. वेगी। 'तरस्वित् त्वरितो वेगी प्रजवी जवनो जवः' इत्यभिधानात । १०. कायबलवान् । ११. स्वेच्छानुगामी। १२. समानदेहबन्धनः । समः संबन्धनो ल०, म०। १३. धुरन्धरः । १४. क्षौद्रवन्मसण । १५. तिर्यग्लोकायत-अ०, इ० । तियंग्दोलायित-ब० । १६. अरुणविपुलकरान्तराः। 'प्रवाहेन्द्रियगजकरान्तरेष स्रोतः' इत्यभिधानात् । पृथुस्रोता १७. आयताङ्गुलिद्वययुतकराग्रः । स्निग्धं चिक्कणम् आताम्र पृथु स्रोतो यस्य तत् दीर्घागुलि समं पुष्कर शुण्डान दो गुलिसपुष्करम्, स्निग्धाताम्रपृथुस्रोतः दीर्घागुलिसपुष्करं यस्य सः इति 'द' टीकायाम् । १८. वर्तुलापरफायः । १९. स्थिरतरः । २०. मेढ़ । २१.विशालवक्षःस्थलः । २२. महाध्वनियुतश्रवणः । अतएव सत्कर्णपल्लवः । २३. प्रशस्तवर्णः । २४. कपालः । २५. शोभावान् । २६. दीर्घायुष्यः । २७. कृतादरः ।
SR No.090010
Book TitleAdi Puran Part 1
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2004
Total Pages782
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size27 MB
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