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**Verse 246** What is the name of the Jina, whose feet even Indra, the king of the gods, worships with utmost humility? And how should one know a good elephant? **Answer:** The Jina is called **Suravarada**, the giver of boons to the gods. An elephant with good teeth and a good voice is considered to have good qualities. **Verse 247** A goddess said, "Mother, you should consider your son as a lion, based on the color of the Ketki flower, the color of the evening, and the color of the middle of his body." **Answer:** The first letter of Ketki is 'K', the first letter of Sandhya is 'S', and the middle letter of the body is 'R'. Combining these three letters, we get 'Kesari', which means lion. So, your statement is true.
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________________ द्वादशं पर्व जिनमानम्रनाकोको नायकार्चितसस्क्रमम् । कमाहुः करिणं चोद लक्षणं कोदशं विदः ॥२४६॥ ['सुरवरद', बहिर्लापिका ] भो केतकादिवर्णेन संध्यादिसजुषामुनों । शरीरमध्यवर्णेन स्वं सिंहमुपलक्षय ॥२४॥ ['केसरी' भन्तापिका ] कः कीदृग न नृपैर्दण्ज्यः कः खे माति कुतोऽम्ब भीः। मीरोः कोदग्निवेशस्ते ना नागारविराजितः॥२४॥ [आदिविषममन्तरालापकं प्रश्नोत्तरम् ] कहनेवाला क्रियापद भवति' है (भू-धातुके प्रथम पुरुषका एकवचन) और भवति अर्थात् नक्षत्र सहित आकाशमें शोभा होती है (भवत् शब्दका सप्तमीके एकवचनमें भवति रूप बनता है) [इन प्रश्नोंका भवति' उत्तर इसी श्लोकमें छिपा है इसलिए इसे निह तैकालापक' कहते हैं ] २४५।। कोई देवी फिर पूछती है कि माता, देवोंके नायक इन्द्र भी अतिशय नम्र होकर जिनके उत्तम चरणोंकी पूजा करते हैं ऐसे जिनेन्द्रदेवको क्या कहते हैं ? और कैसे हाथीको उत्तम लक्षणवाला जानना चाहिए ? माताने उत्तर दिया 'सुरवरद' अर्थात् जिनेन्द्रदेवको 'सुरवरद'-देवोंको वर देनेवाला कहते हैं और सु-रव-रद अर्थात् उत्तम शब्द और दाँतोंवाले हाथीको उत्तम लक्षणवाला जानना चाहिए। [इन प्रश्नोंका उत्तर बाहरसे देना पड़ा है इसलिए इसे 'बहिर्लापिका' कहते हैं ] ॥२४६॥ किसी देवीने कहा कि हे माता, केतकी आदि फूलोंके वर्णसे, सन्ध्या आदिके वर्णसे और शरीरके मध्यवर्ती वर्णसे तू अपने पुत्रको सिंह ही समझ । यह सुनकर माताने कहा कि ठीक है, केतकीका आदि अक्षर 'के' सन्ध्याका आदि अक्षर 'स' और शरीरका मध्यवर्ती अक्षर 'री' इन तीनों अक्षरोंको मिलानेसे 'केसरी' यह सिंहवाचक शब्द बनता है इसलिए तुम्हारा कहना सच है। [इसे शब्दप्रहेलिका कहते हैं ] ॥२४७।। [किसी देवीने फिर कहा कि हे कमलपत्रके समान नेत्रोंवाली माता, 'करेणु' शब्दमें-से क् ,र और ण अक्षर घटा देनेपर जो शेष रूप बचता है वह आपके लिए अक्षय और अविनाशी हो। हे देवि ! बताइए वह कौन-सा रूप है ? माताने कहा 'आयुः', अर्थात् करेणुः शब्दमें से कर और ण व्यंजन दूर कर देनेपर अ+ए+3 ये तीन स्वर शेष बचते हैं। अ और ए के बीच व्याकरणके नियमानुसार सन्धि कर देनेसे. दोनोंके स्थानमें 'ऐ' आदेश हो जायेगा। इसलिए 'ऐ+उ' ऐसा रूप होगा। फिर इन दोनोंके बीच सन्धि होकर अर्थात् 'ऐ' के स्थानमें 'आय' आदेश करनेपर आय् +:=आयुः ऐसा रूप बनेगा। तुम लोगोंने हमारी आयुके अक्षय और अविनाशी होनेकी भावना की है सो उचित ही है। ] फिर कोई देवी पूछती है कि हे माता, कोन और कैसा पुरुष राजाआके द्वारा दण्डनीय नहीं होता ? आकाशमें कौन शोभायमान होता है ? डर किससे लगता है और हे भीरु ! तेरा निवासस्थान कैसा है ? इन १. प्रशस्तलक्षणम् । चोद्यल्लक्षणं अ०, ५०, ल०। चोद्धं लक्षणं ब० । २. सुरेभ्यः वरमभीष्टं ददातोति सुरवरदः तम् । गजपक्षे शोभना रवरदा यस्य स सुरवरदः तम् । ध्वनद्दन्तम् । ३. केतककुन्दनद्याव. तादिवर्णेन । पक्षे केतकीशब्दस्यादिवर्णेन 'के' इत्यक्षरेण । ४. जुषा रागेण सहितः सजुट् सन्ध्या आदिर्यस्यासो सन्ध्यादिसजुट् तेन । पक्षे सन्ध्याशब्दस्यादिवर्ण सकारं जुषते सेवते इति सन्ध्यासजुट तेन सकारयुक्तेनेत्यर्थः । ५. शरीरमध्यप्रदेशगतरक्तवर्णेन । पक्षे शरीरशब्दस्य मध्यवर्ति 'री'त्यक्षरेण । ६. इतोऽने त-बातिरिक्तेषु 'पुस्तकेषु निम्नाङ्कितः श्लोकोऽधिको दृश्यते-आसादयति यद्रूपं करेणुः करणविना । तत्ते कमलपत्राक्षि भवत्यक्षयमव्ययम् । ७. नानागाः विविधापराधः । 'आगोऽपराधो मन्तुः' आनागाः ना निर्दोषः पुमान् । रविः । आजितः सङ्ग्रामात् । * अनुस्वार और विसाँका अन्तर रहनेपर चित्रालंकारका भंग नहीं होता।
SR No.090010
Book TitleAdi Puran Part 1
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2004
Total Pages782
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size27 MB
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