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गृहवासत्याग सों उदासभाव किये होय, भेदज्ञान भाव में प्रतीति आप भाइये। कारण तैं कारिज की सिद्धि है अनादि ही की, आतमीक ज्ञान से अनंत सुख पाइये ।।३४।। जामें परवेदना उछेदना' भई है महा, वेदे निज आतमपद परम प्रकासती। अनाकुल आत्मीक अतुल अतेंद्री सुख, अमल अनूप करे सुख को विलासतो। महिमा अपार जाकी कहां लों बखाने कोय, जाही के प्रभाव देव चिदानंद भासतो। निहचे निहारिके सरूप में संभारि देख्यो, स्वसंवेदज्ञान है हमारो रूप सासतो।।५।। परम अनंत गुण चेतना को पुंज महा. वेदतु है जाके बल ऐसो गुणवान है। सासतो अखंड एक द्रव्य उपादान सो तो, ताही करि सधे यामें और न विनान' है। जाही के सुभाव तैं अनंतसुख पाइयतु, जाही करि जान्यो जाय देव भगवान है। महिमा अनंत जाकी ज्ञान ही में भासतु है, स्वसंवेदज्ञान सो ही पदनिरवान है। ।३६ ।। रागदोष मोह के विभाग धारि आयो तोऊ, निहचे निहारि नाहिं परपद गह्यो है। एक ज्ञानजोति को उद्योत यो अखंड लिये, कहा भयो जो तो जगजाल मांहि बह्यो है।
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१ विनाश. २ निज शुद्धात्मानुभव. ३ इसमें, ४ विज्ञान, ५ बह गया है. आकर्षित हो गया है