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सहज आनंद पाइ रह्यो निज में लौ लाइ, दौरि दौरि' ज्ञेय में धुकाइ' क्यों परतु' है । उपयोग चंचल के किये ही असुद्धता है, चंचलता मेटे चिदानंद उघरतु है। अलख अखंड जोति भगवान दीसतु है, नै एकतें देखि ज्ञान - नैन उधरतु है। सिद्ध परमातमा सो निजरूप आत्मा है,
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आप अवलोकि 'दीप सुद्धता करतु है | १६ || अचल अखंड ज्ञानजोति है सरूप जाको, चेतनानिधान जो अनंतगुणधारी है। उपयोग आतमीक अतुल अबाधित है, देखिये अनादि सिद्ध हिने बिहारी है। आनंदसहित कृतकृत्यता उद्योत होइ, जाही समे ब्रह्मदिष्टि देत जो संहारी है। महिमा अपार सुखसिंधु ऐसो घट ही में, देव भगवान लखि 'दीप' सुखकारी है । । २० ।। पर परिणाम त्यागि तत्त्व की संभार करे,
हरे भ्रम-भाव ज्ञान गुण के धरैया हैं । लखे आपा आप मांहि रागदोष भाव नांहि, सुद्ध उपयोग एक भाव के करैया हैं। थिरता सुरूप ही की स्वसंवेद भावन में, परम अतेंद्री सुख नीरके दरैया हैं। देव भगवान सो सरूप लखे घट ही में,
ऐसे ज्ञानवान भवसिंधु के तरैया हैं ||२१||
१ दौड़-दौड़ कर झपट्टा मार कर २ झुककर, ३ गिर रहा है, ४ मुद्रित पाठ है-यकर्ते, ५ जिस समय ६ शरीर
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