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उपजतां स्वरूप सुख लाभ दे, व्यय करि स्वरूप में निवास करि ध्रुवताको पोषि आनंद पुंज को करि स्वरस की प्रवृत्ति करणहारी कामिनी नवा स्वांग धरे है। परमातम राजा का अंग सकल पुष्ट करे है। और तिया बलको हरे है, या बल करे है और कबहू-कबहू रस-भंग करे है, या सदा रसको करे है, या सदा आनंद को करे है। परमातम राजा को प्यारी, सुख देनी परम राणी अतीन्द्रिय विलासकरणी अपनी जानि आप राजा हू यासों दुराव न करे। अपनो अंग दे समय-समय मिलाय ले है अपने अंग में। राजा तो वासों मिलता वाके रंगि होय है। वा राजा सों मिलता राजा के रंगि होय है। एक रस-रूप अनूप भोग भोगवे है। परमातम राजा अरु परणतितिया का विलास सुख अपार. इन की महिमा अपार है। यह परमातम राजा का राज सदा सासत अचल है। अनंत वर्णन किये हू पार न आवै । विस्तार में आजि थोड़ी बुद्धि, तारौं न समझि परे । तातै स्तोका कथन किया है। जे गुणवान हैं ते या थोड़े ही बहुत करि समझेंगे। इस ही में सारा आया है, समझिवार जानेंगे।
सवैया परमी पुराण लखे पुरुष पुराण पावे सही है स्वज्ञान जाकी महिमा अपार है। ताकी किये धारण उघारणार स्वरूप का हवै हवै है निसतारणार सो लहे भवपार है।। राजा परमातमा को करत बखाण महा
" पोषण कर . २ अन्य, दूसरी. ३ स्त्री. कामिनी, ४ यह छिपाव, कपट,६ शाश्वत,
७ उसके. ८ करने पर भी. ६ अल्प, थोड़ा. १० समझदार, जानकार, ११ परमाला, .१२ प्रकटाना, प्रकाशित करना, १३ पार होना