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आगे परमातम राजा का वर्णन कीजिये है
परमातम राजा अपनी चिपरणति तिया सी रमे है। कैसी है चेतनापरणति? महा अनन्त अनोपम', अनाकुल, अबाधित सुख को देहै। परमातम राजा सो मिलि-मिलि एक रस है है । परमातम राजा अपना अंग सों मिलाय एकरूप करे है।
कोई इहां प्रश्न करे
जो परणति समय-समय और और' होय हैं, तातै परमातम राजा के अनन्त परणति भई, तब अनन्तपरणतितिया कहो।
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ताको समाधान
परमातम राजा एक है। परणतिशक्ति भाविकाल में प्रगट और और होने की है, परि५ वर्तमानकाल में व्यक्तरूप परणति एक है सोही विसर्प राजा को रमावे है। जो परणति वर्तमान की राजा को भोगवे है सो परणति समय मात्र आतमीक अनन्त सुख देकरि विलय जाय है, परमातम में लीन होय है। जैसे देव के देवांगना एक विलय होइ, तब दूजी उपजे, तासो देव भोग करे। परि ए तो विशेष, बाकी रहणि" घणी, याको एक समय मात्र । अरु वा विलय होइ और थानक" उपजे, या परि तिस रूप ही में समावे है। वर्तमान अपेक्षा एक है, अनन्त रस को करे है। सरूप को वेदि अंतर में मिलि स्वरूप निवास करि फेरि दूजे समय उपजे है। स्वरूप के शरीर में प्रवेश करि सुख दे मिलि गई, फेरि उपजि करि दूजे समय फेरि सुख देहै | १ होती है २ होती है, ३ भिन्न-भिन्न, ४ भविष्यत्काल. ५ परन्तु, ६ उस.७ रहना, ८ बहुत. ६ वह. १० अन्य, ११ स्थान पर