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गुण असंख्यात प्रदेश धरे है। एक-एक प्रदेश में अनन्त-अनन्त गुण हैं। एक-एक गुण असंख्यात प्रदेशी, अनन्त पर्याय, अनंत शक्तिमंडित, सत्तासद्भाव, वस्तुत्व भाव, अगुरुलघुभाव, सूक्ष्मभाव, वीर्यभाव, द्रध्यत्यभाव, अब हाथ, प्रमेयत्वभाव, अमूर्तमाव, प्रभुत्वभाव, विभुत्वभाव, तत्त्वभाव, अतत्त्वभाव, भावभाव, अभावभाव, एकभाव, अनेकभाव. अस्तिभाव, सुद्धभाव, नित्यभाव, चैतन्यभाव, परमभाव, निजधरममाव, ध्रुवभाव, आनंदभाव, अखंडभाव, अचलभाव, भेदभाव, अभेदभाव, केवलभाव. सासतभाव, अरूपभाव, अतुलभाव, अजभाव, अमलभाव, अविकारभाव, अछेदभाव, अमितभाव, प्रकाशमाव, अपारमहिमाभाव, अकलंकभाव, अकर्मभाव अघटभाव, अखेदभाव, निर्मलभाव, निराकारभाव, निहपन्नभाव, निःसंसारभाव, नास्ति- अन्यत्वभाव ते रहितभाव, कल्याणभाव स्वभाव, पररहितभाव चेतनागुण सो व्यापकभाव, ऐसे अनंत भाव एक-एक गुण धरे है। ऐसे अनंत-अनंत गुण एक-एक प्रदेश धरे सो ज्ञान ने वे प्रदेश जाने, तब प्रगटे बिना, ज्ञान विन प्रदेशन की सकल विशेषता को न जानता, तातै प्रदेश महिमा जानवे को ज्ञान है । सत्तागुण सासत' लक्षण को घरे, द्रव्यसत्, गुणसत्, पर्यायसत्, अगुरुलघुसत्, सूक्ष्मसत्, अनन्त गुणसत्, महासत्, अवान्तरसत्, एकपर्यायसत्, अनेकपर्यायसत्, विश्वरूपसत्. एकरूपसत्, सर्वपदार्थस्थितिसत्, एक-एक पदार्थस्थितिसत्, विलक्षणसत्, अत्रिलक्षणसत् ऐसे सत्ताभेद ज्ञान जाने है, तब प्रगटे है, तातै प्रधान हैं। सूक्ष्म के भेद-द्रव्यसूक्ष्म, गुणसूक्ष्म, पर्यायसूक्ष्म, ज्ञानसूक्ष्म, दरसनसूक्ष्म, वीर्यसूक्ष्म, सुखसूक्ष्म, अगुरुलघुसूक्ष्म, द्रव्यत्वसूक्ष्म, वस्तुत्वरूपसूक्ष्म, ऐसे अनंतगुणसूक्ष्मभेद ज्ञान प्रगट करे है, तातें ज्ञान प्रधान है। ऐसे अनंतगुण १ अदृश्य, भ दिखाई पड़ना, २ शाश्वत, नित्य