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न हलका द्रव्य जैसे का तैसा अगुरुलघु ते है । पर्याय जैसी की तैसी अगुरुलघु ते है। ज्ञान न हलका, न भारी, दर्शन न हलका, न भारी वीर्य न हलका, न भारी, प्रमेय न हलका, न भारी, सब गुण न हलके, न भारी । अगुरुलघु गुण की रिद्धि सब गुणन में आई, तातैं सब ऐसे भये । वृद्धि हानि-विकार अगुरुलघु ते भया, तातैं सब द्रव्य गुण की सिद्धि, तातैं सब जैसे के तैसे पाइये, सोई कहिये है - सिद्ध के अनंतगुण में एक सत्तागुण रूप सिद्ध' परणवे, तहां अनंतवे भाग परणमन की वृद्धि कहिये । असंख्यात गुण में एक वस्तुत्व रूप परणवे ऐसा कहिये, तब असंख्यात भाग परणमन की वृद्धि कहिये । आठ (गुण) में सम्यक्तरूप परणमे है ऐसा कहिये, तब संख्यात भाग परणमन की वृद्धि कहिये । आठ गुण रूप परणमे है ऐसा कहिये, तब संख्यात गुण परणमन की वृद्धि कहिये । असंख्यात गुण रूप परण' है ऐसा कहिये, तब असंख्यात गुण परणमन की वृद्धि कहिये । अनंतगुण रूप सिद्ध परणमे है ऐसा कहिए, तब अनन्तगुण परणमन की वृद्धि भई । ऐसे षट्वृद्धि भई । परणमन' वस्तु में लीन भया, तहां हानि भई । भेद वृद्धि मिटि गई, तातैं हानि ऐसा नाम पाया । इन वृद्धिहानि करि वस्तु ज्यों है त्यों रहे है । षट्वृद्धि में सब गुणरूप परणया, तब गुण का सरूप प्रगट परणये ते भया । न परणमता, तो गुण न प्रगटते, तातैं वृद्धि गुण को राखे है । हानि न होती तो वस्तु का रसास्वाद ले परणाम लीन न होता । परणामलीनता बिना द्रव्य रसास्वाद सों तृप्त न होता । तब रसास्वाद की तृप्ति बिना द्रव्य द्रव्य की स्पष्टता न धरता, तब द्रव्यपणा न रहता। तातैं द्रव्य के गुण के राखिवे को वृद्धि - हानि द्रव्य में परणाम द्वारा है, तातें १ कर्मों से रहित, निरंजन, पूर्ण शुद्ध २ तन्मय, ३ लीन, तन्मय ४ परिणमन करते. ५. परिणाम
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