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सासते हैं सो विन गुण के लक्षण को गुण--परिणति सिद्ध करे है। द्रव्य गुणन में परणया, तब गुणपरिणति भई । द्रव्य गुण रूप न परणवता', तब गुण की सिद्धि न होती, यारौं गुण की सिद्धि परिणति कीजे है। गुण का वेदन गुण परिणति ने किया है। वेदन भाव ते गुण का सर्वस्वरस प्रगट है। सर्वस्व रस प्रगट गुण की सिद्धि है। गुण बिना गुणी नहीं, गुणी बिना गुण नहीं, यातें गुण परणति बिना नहीं, परणति गुण बिना नहीं। यात परणति ते जुगपत गुण की सिद्धि है। ऐसे द्रव्यत्व गुणको सासती रिद्धि सत्ता ने दी। तातें सत्ता की रिद्धि ते द्रदत्त विलास की सिद्धि है। वस्तुत्व गुण वस्तु के भाव को लिये है सो सासता है; सामान्य विशेष भावरूप वस्तु की सिद्धि करे है। सब गुण अपना सामान्य विशेष भाव धारि आप वस्तुत्व रूप भये । सामान्य प्रकाश, विशेष प्रकाश सामान्य विशेष ते है । सो सामान्य विशेष का विलास सब गुण करे है, वस्तु संज्ञा सब धरे हैं। सो सामान्य विशेष रूप वस्तुत्व विलास की सिद्धि सत्ता गुण ने सासता भाव दिया, ताते है । सो सत्ता की रिद्धि सासता भाव सब को देहै। वीर्यगुण को वीर्यसत्ता ने सासताभाव दिया। वीर्य स्वस्वरूप निहपन्न' राखवे की सामर्थ्य रूप गुण वीर्यगुण निहपन्न राखे, द्रव्य–वीर्य द्रव्य को निहपन्न राखे । सामर्थ्यता अपनी करि पर्याय वीर्यपर्याय को निहपन्न राखवे को समरथ, वीर्यगुण का विलास वीर्य अपार शक्ति धरि करे है। ताकी सिद्धि एक वीर्यसत्ता ते भई है। ऐसे एक सत्ता की रिद्धि सब गुण में विसतरी है, तब सब सासते भये। यह सत्ता गुण की रिद्धि कही। ऐसी रिद्धि धारे है, तातें सत्ता को ऋषीश्वर कहिये।
१ परिणमता. २ शाश्वत, नित्य, ३ निष्पन्न, शक्ति
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