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गुण है, दरसन परणति परजाय है। जो दरसन न होता, तो ज्ञायकता न होती, ज्ञायकता मिटे. चेतना का अभाव होता । तातै सकल चेतना का कारण एक दरसन गुण है। सर्वदर्शित्व महिमा को धरे दरसन है, ताको सासता दरसन सत्ता ने किया, यह सासते राखिवे की रिद्धि दरसन को सत्ता ने दीनी है, तातें सत्ता की रिद्धि दरसन में है।
आगे द्रव्यत्व गुण को सत्ता-रिद्धि दी सो कहिये है
द्रवत्व गुण करि द्रव्य-गुण-परजायन' को द्रवे । गुण--परजाय द्रव्य को द्रवे, द्रवीभूत द्रव्य के भया, तब द्रव्य परणया गुणन में द्रवे बिना परिणति न होती। द्रव्य सासता नित्य ज्यों था, त्यों न रहता, तब परिणति बिना उत्पाद करि स्वरूप लाभ था सो न होता, व्यय न होता, तब परिणति स्वरूप निवास न करती. ध्रुवता की सिद्धि न होती। उत्पाद-व्यय बिना ध्रुव न होता, तातै परणति ते उत्पाद-व्यय. उत्पाद-व्यय ते ध्रुवसिद्धि. सो परिणति होना द्रवत्व ते, ताः द्रव्य द्रवा, तब परिणति भई। गुण द्रवे. तब गुण-परिणति गुणन ते भई: सब गुण का जुगपत भाव गुण-परिणति ने किया। यहां कोई प्रश्न कर है
कि जुगपत गुण की सिद्धि परिणति ने करी, तो क्रमवरती तें जुगपत भाव कैसे सध्या? ताका समाधान
वस्तु जो है सो क्रम सहभावी भाव रूप है। गुण--परिणति क्रम गुण का है। गुण लक्षण सहभावी है। सब गुण सहभाव क्रमभाव को धरे है। गुण अपने लक्षण रूप सदा
१ पर्यायों. २ क्रमबद्ध या क्रमवर्ती पर्याय. ३ पर्याय. ४ गुण
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