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का स्थिति भाव सुद्ध यथावत कार्य संवारे हैं। यातें सूक्ष्मगुण की सेवावृत्ति सधी, तातै सूक्ष्मगुण शूद्र ऐसा नाम पाया । सत्तागुण के अनंतपर्याय सत्ता है लक्षण, पर्याय सब को दिये, तब सब गुण अस्तिभाव रूप भये अपना अस्तिभाव पर्याय दे; उनके अस्तिभाव राखन के कार्य संवारे । तातैं सत्ता उनके कार्य संवारने तैं उनकी सेवावृत्ति भई, तब सत्ता को शूद्र ऐसा नाम भया । या प्रकार सब गुण शूद्र भये ।
आगे प्यारि आश्रम-भेद लिखिये हैं
सब गुण ब्रह्म आचरण किये हैं, तातें ब्रह्मचारी हैं। ज्ञान ब्रह्म एक है, तातैं ज्ञान ब्रह्म का आचरण किये है ज्ञान ब्रह्मचारी । दररान ब्रह्मरूप, तातैं दरसन ब्रह्मचारी । वीर्य सब ब्रह्म की निहपन' राखे, तातैं ब्रह्म वीर्यशक्ति ते ब्रह्म भया है । तातैं वीर्य ब्रह्म के आचरण रूप भया तातैं वीर्य ब्रह्मचारी, सत्ता ब्रह्मरूप तातैं सत्ता ब्रह्मचारी या प्रकार सब गुण ब्रह्मचारी हैं ।
आगे गृहस्थ भेद लिखिये हैं
ज्ञान निज़ ज्ञान सत्ता गृह में तिष्ठे है, तातैं ज्ञान गृहस्थ कहिये। दरसन अपने दरसनसत्ता गृह में स्थिति किये है, तातें दरसन गृहस्थ है। वीर्य अपने वीर्यसत्ता गृह में निवसे है, तातें वीर्य गृहस्थ है। सुख अपने अनाकुललक्षण सुखसत्ता गृह में स्थिति किये है; तातैं सुख गृहस्थ है। या प्रकार सब गुण गृहस्थ हैं ।
आगे वानप्रस्थ-भेद कहिये हैं
अपने निज 'बान'र में प्रस्थ कहिये तिष्ठे । 'वान' आपका निज १ निष्पन्न, शक्ति, सत्ता २ स्वरूप
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