________________
(प्रकाशकीय
कवियर पण्डित दीपचन्द जी सत्रहवीं शताब्दी के उच्च कोटि के हिन्दी कवि हुए है । यद्यपि हिन्दी साहित्य के किसी भी इतिहास में उनका नामोल्लेख तक नहीं है, किन्तु उनके द्वारा रचित जो गद्य-पद्य रचनाएं मिलती हैं, वे खड़ी बोली की ऐसी काव्यात्मक मनोहारी रचनाएँ हैं जिनमें ब्रजभाषा की सुन्दर छटा लक्षित होती है । हिन्दी साहित्य में शोध-भानुमान दो गले शोधार्थियों को इन सभी रचनाओं पर समस्त तथा व्यस्त रूप से समीक्षात्मक अनुशीलन करना चाहिए । इस दृष्टि से तथा आध्यात्मिक जगत् में स्वाध्यायी जनों के आत्महित को ध्यान में रख कर "आध्यात्म-पंचसंग्रह" का प्रकाशन किया जा रहा है।
श्रद्धेय पण्डितप्रवर सदासुखदासजी कासलीवाल के पवित्र साधना स्थल नगर अजमेर में धर्मनिष्ठ श्री पूनमचंदजी लुहाडिया द्वारा दिनांक 16 अप्रैल, 85 को प्रस्थापित संस्था श्री वीतराग विज्ञान स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, अजमेर गत 10 वर्षों से विविध योजनाओं के माध्यम से वीतराग दि. जैन धर्म के प्रचार-प्रसार एवं धर्मप्रभावना के क्षेत्र में उल्लेखनीय रूप से गतिशील है। इसी ट्रस्ट के अन्तर्गत स्थापित 'श्री प. सदासुख ग्रंथमाला' द्वारा अब तक निम्नलिखित जनोपयोगी ग्रंथों का प्रकाशन किया जा चुका है -
(1) मृत्यु महोत्सव (तीन संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं) (2) सहज सुख साधन (3) बारह भावना शतक (द्वितीय खंड) (4) साधना के सूत्र (5) आगम रत्न (बोलती दीवारें)
स्वाध्याय मंदिर के भव्य भवन में निर्मित श्री सीमन्धर जिनालय में प्रतिदिन प्रात:काल सामूहिक जिनेन्द्रपूजा एवं स्वाध्याय कार्यक्रम आत्मसाधना के पिपासु साधी बंधुओं के लिए सहज साधन के रूप में उपलब्ध है । गत वर्षों में अष्टान्हिकदशलक्षण पर्व एवं अन्य अनेक विशेष प्रसंगों पर जैन दर्शन के उच्चस्तरीयआध्यात्मिक तत्ववेता मनीषी विद्वानों के सान्निध्य तथा निर्देशन में शास्त्र- प्रवचन, तत्वगोष्ठी, विशिष्ट विधान पूजाएं, भक्ति संगीत तथा अन्य विविध सांस्कृतिक, अध्यात्मिक कार्यक्रमों के संयोजन द्वारा वीतराग जिनशासन की प्रभावना कार्य में ट्रस्ट सतत गतिशील रहा है। इस वर्ष ट्रस्ट में श्री कुदंकुद-कहान दि. जैन तीर्थ रक्षा ट्रस्ट, बम्बई द्वारा संचालित श्री टोडरमल दि. जैन सिद्धान्त महाविद्यालय, जयपुर के अन्तर्गत श्री पं. सदासुखदास दि. सिद्धान्त विद्यालय स्थापित करके 25 छात्रों के पठन पाठन निवास, भोजनादि का समस्त खर्च स्थायी रूप से देने