________________
तासो धरे हेत' कहे मेरी अति प्यारी है। आभूषण आदि वस्तु बहुते' नंगाय देत, विषेसुख हेतु' ही ते हिये मांहि धारी है।। महा मोह फंद ताको मंद करे चंदमुखी, ताको दास होय' मूढ करे अति भारी है। आपदा दुवार जाको सार जानि जानि रमे, भवदुखकारी ताहि कहे मेरी नारी है। ११ ।। पर परिणति सेती प्रेम दे अनादि ही को, रमे महामूढ यह अति रति मानि के। कुमति सखी है जाकी ताको फाँस लिये डोले, गति-गति माहि महा आप पद जानि के।। सहज के पाये बिनु राग-दोष ऐचत है, पावे न स्वभाव यों अज्ञान भाव ठानि के। कहे 'दीपचंद' चिदानंदराजा सुखी होइ, निज परिणति तिया घर बैठे आनि के ।।१२।। चिदपरणति नारी है अनंत सुखकारी. ताही को बिसारी ताते भयो भववासी है। जाको धारि वानि तातें आप के समारे निधि, आतमीक आप केरी महा अविनासी है। भोगवे अखंड सुख सदा शिवथान मांहि, महिमा अपार निज आनंद विलासी है। कहे 'दीपचंद' सुखकंद ऐसे सुखी होय, और न उपाय कोटि रहे जो उदासी है।।१३।।
१ प्रेम. २ बहुत, ३ लिए, ४ मुद्रित पाठ है-दासातन, ५ द्वार, ६ से. ७ खींचते हैं, ८ भुला दिया है. ६ स्वरूप, मुद्रित पाठ है-"घारि आनि", १० की, ११ प्रकार
१४४