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देशना गुरु कहे जानि प्यारे । अतुल आनंद में ज्ञान पद आप है, ताप भव को नहीं है लगारे । । आप आनंद के कंद को भूलिके. भमत जग मांहि यह जंतु सारे । आप की लखनि करि आप ही देखि हैं, आप परमातमा शिवसुखवारे' । ८५ ।। अलख सब ही कहें लख न कोई कहे, आप निज ज्ञान ते संत पावें । जहां मंत नहीं तंत मुद्रा नहीं भासिर है, धारणा की कहो को चलावे ।। वेद अरु भेद पर खेद कोऊ नहीं, सहज आनंद ही को लखावे । आप अनुभौ सुधा आप ही पीय के, आप को आप लहि अमर थावे | | ८६ ||
सवैया यो ही करे करम को यो ही धरे धरम को, यो ही मिश्रभाव सोंज करता कहायो है। यो ही शुभलेश्या धरि सुरग पधार्यो आप, यो ही महापाप बांधि नरकि सिधायो है । यो ही कहूं पातरि नाचत हवै नेक फिर्यो, यो ही जसधारी ढोल जसई ६ बजायो है ।
या ही परकार जग जीव यो करत काम, औसर" में साधो शिव श्रीगुरु बतायो है । । ८७ ।।
१ मुद्रित पाठ है- नाजूबारे २ भासित होती है, ३ होता है, ४ मुद्रित पाठ है--नौ जु. ५ वेश्या, ६ नगाड़ा, ७ अवसर
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