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यात नहीं जाने मरजाद पद ना लह्यो।। याते वस्तु जथावत राखवे को कारण है, ऐसो यो अखंड लखि संपुरषा' लह्यो। याही के प्रसाद तीनों जथावत याही तैं, याही को प्रताप जगि जैवंतो' वणि रह्यो । ५५ ।। द्रव्य गुण परजाय स्वपद के राखवे को, वीरज के बिना नहीं सामरथ्य रूप है। वीरज अधार यह अनाकुल आनंद हू, याः यह वीरज ही परम अनूप है। वीरज के भये ये हू सब निहपन्न भये, या यह वीरज ही सबन को भूप है।।५६ ।। एक परदेस में अनंत गुण राजतु हैं, ऐसे ही असंख्य पदेस भारी जीव है। दरव को सत्ता अरु आकृति प्रदेशन ते, गुण परकाश है प्रदेश ते सदीव है।। अर्थक्रियाकारक ये परणति ही तै है है, ऐसी परणति ही के परदेश सीव है। गुण-परजाय जामें करत निवास सदा, यातै प्रदेशत्व गुण सबन को पीव है। 1५७ ।। सबन को ज्ञाता ज्ञान लखत सरूप को है, दरशन देखि उपजावत आनन्द को। चारित चखैया चिदानन्द ही को वेदतु है, रसास्वाद लेय पोर्षे महासुख कन्द को ।। अनुभौ अखंडरस वश पर्यो आतमा यो,
१. सम्यग्दृष्टि पुरुषों ने शुद्धात्मा को प्राप्त किया है. २ जयवन्त, ३ सीमा, ४ प्रिय, स्थामी
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