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सामान्य विशेष दोउ सब गुण मांहि सधे, परजाय मांहि याते सधत अशेष' हैं ।। द्रवे द्रव्यसामान्य जु भाव द्रवे यों विशेष, सामान्यविशेष सो तो गुण को अलेषर हैं। परजाय परणवे यो ही है सामान्य ताको, गुणन को परणवे यो ही जाको शेष हैं। ।५२ ।। सादृश्य स्वरूप सत्ता दोउ भेद सत्ता के, ताहू में स्वरूपसत्ता भेद बहु कहे हैं। द्रव्य गुण परजाय भेद तैं बखानी त्रिधा, गुण सत्ता भेद तो अनंत भेद लहे हैं ।। दरसन है दृग की ज्ञान है सुज्ञान सत्ता, ऐसे ही अनंत गुण सत्ता भेद चहे है। परजाय सत्ता सो तो राखे परजाय को है, ऐसे सत्ताभेद लखि ज्ञानी सुख गहे हैं। ।५३।। एक परमेय की प्रजाय सो अनंतधा है, तारौं सब गुण योग्य करवे प्रमाण हैं | परमेय बिना परमाण जोग्य नाहिं हुते, यातें परमेय सब गुण में प्रधान हैं ।। याही परकार द्रव्य परजाय माहि देखो, याही सैं विशेष महा यो ही बलवान हैं। याकी विधि जाने सो प्रमाणे आनंद को, सब परमाण करि पावे सुखथान हैं । ।५४ ।। द्रव्य--गुण--पराजय जैसे ही के तैसे रहें. ऐसो यो प्रभाव सो अगुरुलघु को कह्यो।। बिना ही अगुरुलघु हलके के भारी हुते. १ सम्पूर्ण. २ परस्पर मिले हुए. ३ पर्याय. ४ अनन्त प्रकार. ५ प्रमेय,
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