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दोहा
एक अशुद्ध जु शुद्ध है, ध्यान दोय परकार। शुद्ध धरे भवि जीव है, अशुध धरे संसार ||२८|| शुद्ध ध्यान परसाद ते, सहज शुद्ध पद होय । ताको वरणन अब करो दुख नहीं व्यापे कोय।।२६ ||
सवैया प्रथम धरम ध्यान दूजो है सुकलध्यान, आगम प्रमाण जामें भले दोउ ध्यान हैं। पदस्थ पिंडस्थ रूपस्थ रूपातीत, अध्यातम विवक्षा मांहि ध्यान ये प्रमाण हैं ।। मन को निरोध महा कीजियतु ध्यान मांहि, यातें सब जोगन में ध्यान बलवान है। पौन वसि किये सेती मन महा वसि होय, यातें गुरुदेव कहे पवन विज्ञान है।।३०।। परिणाम नै निक्षेप कहे सब ध्यान कीजे, सब ही उपायन में यो उपाय सार है। देवश्रुत गुरु सब तीरथ जु प्रतिमाजी. चिदरूप ध्यान काजे' सेवे गुणधार हैं।। विवहार विधाने सोहू एकागर तातै सधे, तातें ध्यान परधान महा अविकार है। केवली उकतिः वेद याके गुण गावत हैं, ऐसो ध्यान साधि सिद्ध होय सुखकार है।।३१।।
१ नय, २ के लिए. ३ प्रकार, ४ एकाकार, ५ जिनवाणी.
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