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________________ " हे आध्यात्मिक गुरुओ, उपचारक गुरुओ और उपचारक देवदूतो, मैं विनम्रतापूर्वक आपके दिव्य मार्गदर्शन, दिव्य उपवार और दिव्य सुरक्षा के लिए प्रार्थना करता हूं। धन्यवाद सहित और पूर्ण विश्वास के साथ | " उपचारक अपनी कोई अन्य प्रार्थना भी कर सकता है, अथवा इसका संशोधन कर सकता है। (५) उपचारक द्वारा दिव्य ऊर्जा ग्रहण करने की विधि Procedure for receiving the Divine Energy by the Healer (क) साधारण शक्तिशाली उपचारक के लिए 11 की तकनीक द्वारा (ख) अधिक शक्तिशाली उपचारक के लिए 7 का हल्का सा स्पर्श करते हुए, 11 की तकनीक द्वारा। 7 को स्पर्श करने से ऊर्जा की अत्यधिक शक्ति थोड़ी सी कम पड़ जाती है, अन्यथा रोगी कमजोर हो सकता है या मूर्छित हो सकता है। (ग) अत्यधिक शक्तिशाली उपचारक के लिए, जिनके अन्तःकरण की डोरी उनके सिर से भी अधिक मोटी है। 7 का स्पर्श करते हुए 10 की तकनीक द्वारा । अत्यधिक शक्तिशाली उपचारक के द्वारा इस प्रकार ग्राह्य ev अपेक्षाकृत मृदु सुरक्षित और अधिक प्रभावी होती है। ऐसे लोग 11 की तकनीक से ev ग्रहण करेंगे, तो वह रोगी के शरीर पर अत्यधिक हावी हो जाएगी और उपचार की गति धीमी हो जाएगी। (घ) दिव्य ऊर्जा अन्य चक्रों के माध्यम से ग्रहण करना 9 द्वारा। इसके अतिरिक्त 76 के माध्यम से 7 द्वारा । (&) उपचारक क्या करता है What is done by the Healer with ev (क) प्रभावित चक्रों एवम् अंगों की सफाई तथा ऊर्जन। नीचे के चक्रों की अपेक्षा ऊपर के चक्र ev को अधिक ग्रहण करते हैं। जो स्थूल रोगी — ५.५२२
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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