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(७)
हैं, अर्थात जो अधिक धार्मिक प्रवृत्ति के नहीं हैं, उनके नीचे के चक्र सीधा ऊर्जन करने पर ev को बिल्कुल ही ग्रहण नहीं करते ।
(ख) 7b के माध्यम से, 9, 10 अथवा 11 द्वारा ev ग्रहण करके, उपचारक उसको रोगी के शरीर के विभिन्न अंगों में भेज सकता है। इसमें उपचारक ग्रहण करने वाले चक्र से ev को शरीर के सभी भागों में, विशेष तौर पर प्रभावित चक्रों और भागों में फैलते हुए दृश्यीकृत करता है। एक शक्तिशाली उपचारक अपनी हथेली द्वारा 7b को ठोकते हुए अतिशीघ्र ev की बहुत ही अत्यधिक मात्रा रोगी के शरीर में प्रवेश करा सकता है।
(ग) दिव्य ऊर्जा को धीरे-धीरे या शीघ्रता से जैसे चाहें, प्रेषण किया जा सकता है। यदि यह अति शीघ्र किया जाये, तो रोगी को चक्कर आ सकते हैं अथवा वह मूर्छित हो सकता है। इसी कारण से दिव्य उपचार में अपनी हथेली को रोगी के 9 या 10 को हल्के से स्पर्श करते हुए अथवा ठोकर मारते हुए, जब अत्यधिक दिव्य ऊर्जा का प्रेषण किया जाता है, तो रोगी मूर्छित हो सकता है.
उपचार की विधि
(क) उक्त क्रम (३) में वर्णित प्रार्थना रोगी एवम् क्रम ( ४ ) में वर्णित प्रार्थना उपचारक करे ।
(ख) उपचारक अत्यधिक चमकती हुई सफेद प्रकाश अथवा विद्युतीय बैंगनी प्रकाश ऊपर से रोगी के 11 में प्रवेश करते हुए एवम् उसके शरीर के समस्त भागों में फैलती हुई दृश्यीकृत करे।
(ग)
जब तक रोगी का शरीर दिव्य ऊर्जा को पूरी तरह इस्तेमाल करले, तब तक उसको (दिव्य ऊर्जा को ) रोगी के साथ ही रहने के लिए उपचारक उससे मानसिक रूप से निवेदन करे ।
(घ) उपचार के अन्त में रोगी व उपचारक दोनों ही निम्न प्रार्थना करें :
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