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________________ (२) दिव्य ऊर्जा को प्राप्त करने की योग्यता- Qualifications for receiving the Divine Energy उपचारक को उन्नत प्राणशक्ति उपचार एवम् मनोरोग प्राणशक्ति उपचार में साधारण दक्षता एवम् अनुभव होना आवश्यक है। यदि रत्नों द्वारा प्राणशक्त्ति उपचार का भी थोड़ा ज्ञान व अनुभव हो, तो यह और भी अत्युत्तम होगा। इसके अतिरिक्त उसकी ईश्वर में अटूट आस्था एवम् भक्ति उच्च श्रेणी की सच्चरित्रता तथा संयमपूर्वक जीवन भी आवश्यक है। (३) दिव्य ऊर्जा के ग्राह्यता की स्वीकृति- Affirmation for Receptivity दिव्य उपचारी ऊर्जा बहुत शक्तिशाली होती है, किन्तु बहुत सूक्ष्म तथा गूढ़ होती है। शीघ्र उपचार के लिए रोगी को अति ग्रहणशील होना पड़ेगा, अन्यथा उपचार धीमी गति से होगा। यदि रोगी बिल्कुल ही ग्रहणशील नहीं है, तो उपचार होगा ही नहीं। ऐसे केसों में या साधारण रंगीन प्राणों का प्रयोग श्रेयस्कर होगा। अग्रहणशील रोगियों को ये प्राण इसलिए ज्यादा उपयोगी होंगे क्योंकि वे ev से अधिक स्थूल हैं। रोगी की ग्राह्यता उसके द्वारा तीन बार निम्न प्रार्थना मौन अथवा मौखिक रूप से कहने से बढ़ सकती है : "हे प्रभु, मैं आपसे दिव्य आशीर्वाद तथा उपचार के लिए प्रार्थना करता हूं। मैं दिव्य उपचारी ऊर्जा को पूर्णरूपेण स्वीकार करता हूं। धन्यवाद सहित और पूर्ण विश्वास के साथ।" (४) उपचारक द्वारा प्रार्थना- Invocation by the Healer उपचार करने से पूर्व , उपचारक मौनपूर्वक निम्न प्रार्थना तीन बार करे "हे प्रभ, मैं विनम्रतापूर्वक आपके दिव्य मार्गदर्शन, दिव्य उपचार और दिव्य सुरक्षा के लिए प्रार्थना करता हूं। धन्यवाद सहित और पूर्ण विश्वास के साथ ।” इसके अतिरिक्त निम्न प्रार्थना भी तीन बार करें। ५.५२१
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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