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(घ) ऊपर के और नीचे के चक्रों की पुनः जांच करें। आप पाएंगे कि (ख) व
(ग) प्रक्रियाओं से चक्रों की दशा सुधर गयी है। 1 व 2 जो पहले अधिक सक्रिय और खोखलेपन से युक्त था, अब कम अधिक सक्रिय और ऊर्जित हो गये हैं। 4 व 3 पहले से अधिक सक्रिय और ऊर्जित हो गये हैं। ऊपर के चक्र जो सामान्यत: छोटे और घनेपन युक्त थे, अब अधिक बड़े और कम घनेपन युक्त है। इस रोग के शीघ्र उपचार के लिए रक्त एवम् आंतरिक अंगों की सफाई की तकनीकें अति
महत्वपूर्ण है। (ङ) GS (लगभग तीन या चार बार) (च) C' 4G/EG लगभग तीन श्वसन प्रक्रिया तक ). R ( लगभग आठ
श्वसन प्रक्रिया तक ) – यह चरण अति महत्वपूर्ण है क्योंकि अन्य निम्न चक्रों का सुचारुपूर्वक कार्यरत होना 4 के सुचारुपूर्वक कार्यरत होने पर निर्भर करता है। T' 4 होने पर अन्य चक्रों में काफी सुधार हो जाएगा।
(छ) C' (1, 2, p) GO/ER (प्रत्येक चक्र ER द्वारा लगभग आठ श्वसन
प्रक्रिया तक ऊर्जित करें) (ज) C' 3 G/E W (लगभग चार या पांच श्वसन प्रक्रिया तक)। 3 की
पुनः जांच करें । यदि यह अधिक सक्रिय है, तो उसके सामान्य होने तक c द्वारा अतिरिक्त ऊर्जा बाहर निकालें।
जो वृद्ध हैं, उनका EW लगभग दो श्वसन प्रक्रिया तक करें। जो व्यक्ति ५५ वर्ष से अधिक आयु के हैं, उनके मामले में उपचारक को सावधान रहना होगा, क्योंकि उनका 3 अति ऊर्जित होने की दशा में कुछ समस्यायें हो सकती हैं। C5 GVIE V (लगभग तीन से पांच श्वसन प्रक्रिया तक करें)। 5 तथा 3 की पुनः जांच करें। E5 से कभी-कभी 3 अधिक सक्रिय हो जाता है। ऐसी दशा में C (3 व 5) द्वारा तुरन्त ही 3 को संकुचित करें।
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