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मैं आपको दिव्य आशीर्वाद, दिव्य प्रेम और करुणा, दिव्य उपचार, दिव्य सहायता और सुरक्षा के लिए धन्यवाद देता हूं। धन्यवाद सहित और पूर्ण विश्वास के साथ।"
(उक्त प्रार्थना की तान बार दोहराएं) (ज) उपचार से पूर्व, आप अपनी प्रार्थना करें, अथवा निम्न प्रार्थना करें : "हे सर्वशक्तिमान प्रभु.
मैं आपको (रोगी का नाम लीजिए) के उपचार के लिए दिव्य आशीर्वाद, दिव्य प्रेम और करुणा, दिव्य सहायता और सुरक्षा के लिए धन्यवाद देता हूं। धन्यवाद सहित और पूर्ण विश्वास के साथ।
(उक्त प्रार्थना को तीन बार दोहराएं, तत्पश्चात)
हे आध्यात्मिक गुरुओ, आध्यात्मिक उच्चात्माओ, उपचारक गुरुओ. उपचारक देवदूतो, प्रकाश के देवो और महान व्यक्तियो,
मैं आपको (रोगी का नाम लीजिए) के उपचार के लिए दिव्य आशीर्वाद, दिव्य प्रेम और करुणा, दिव्य सहायता और सुरक्षा के लिए धन्यवाद देता हूं। धन्यवाद सहित और पूर्ण विश्वास के साथ।"
( उक्त प्रार्थना को तीन बार दोहराएं) जब आप दिव्य आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं. तो आपके अन्दर दिव्य उपचारी ऊर्जा का प्रवाह होता है। उसका दिग्दर्शन चित्र
५.२२ में किया गया है। (झ) प्राण--श्वसन विधि द्वारा अपना ऊर्जा स्तर बढ़ायें।
अपनी जीभ को तालु से लगायें | अध्याय २८ में चित्र ५.०६ में जो रत्नों के धारण से शरीर के ऊपरी भागों एवम् ऊपरी चक्रों और शरीर के नीचे के भागों एवम् नीचे के चक्रों के बीच में जो ऊर्जा स्तर की असमानता है, वह इससे काफी कम हो जाती है और नीचे के भाग/चक्रों का ऊर्जा स्तर ऊपर के भाग/चक्रों के ऊर्जा स्तर के तुलना में थोड़ा सा ही अधिक रहता है, अतएव यह महत्वपूर्ण है।