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________________ "सूर्य, वायु और पृथ्वी से अभी तुरन्त ही से ऊर्जा को सोखिए तथा स्टोर कीजिए। केवल स्वच्छ और स्वस्थ ऊर्जा ही सोखिए। जब तक आपको निर्देशित नहीं किया जाता, तब तक ऊर्जा सोखते तथा स्टोर करते रहिए।" (ख) कई घंटों बाद, रत्न की ओर देखते हुए मौखिक या मानसिक तौर पर निम्न निर्देश तीन बार दीजिए : "सूर्य, वायु और पृथ्वी से ऊर्जा ग्रहण करना बन्द करिए।" (ग) यदि आपको रत्न पवित्रीकृत नहीं करना है, तो स्थिरीकरण तथा सील करें। तत्पश्चात् वायवी डोर को काटें। क्रम (ग)- रत्न को एक साथ चार्ज तथा पवित्रीकृत करना Charging and Consecration of Crystals simultaneously उपक्रम (9) पार्ज दिए हुए रत्ना को वित्रीकन करने से उसकी शक्ति और अधिक बढ़ जाती है। यह क्रम (ख) में वर्णित चार्जिंग के मुकाबले अधिक शक्ति देता है। चार्जिंग तथा पवित्रीकरण करना सबसे अच्छा दिन में स्वच्छ खुले वातावरण में होता है, क्योंकि वह सूर्य, वायु और पृथ्वी से भी ऊर्जा सोखता है। (ख) इस क्रिया की यह पूर्व अपेक्षित शर्त है कि पवित्रीकरण करने वाले व्यक्ति का सर्वशक्तिमान ईश्वर, उच्च अध्यात्माओं, पवित्र फरिश्तों (देवदूतों), प्रकाश के देवों और nature spirits (प्रकृति आत्माओं) में विश्वास हो। (ग) चार्जिंग तथा पवित्रीकरण करने से पहले, उनको उक्त क्रम (क) में बतायी गयी विधिओं से अच्छी तरह स्वच्छ करना परमावश्यक है। एक समय में एक या एक से अधिक रत्नों का चार्जिंग/पवित्रीकरण किया जा सकता है। ५.४५५
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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