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________________ गुजरना पड़ता है। रत्न का इन सभी व्यक्तियों द्वारा उपरोक्त (क) तथा (ख) में वर्णित संक्रमण होता है, तथा हो सकता है कि इनमें से किसी ने (ग) में वर्णित प्रोग्राम भी किया हो। इसके अतिरिक्त कोई भी रत्न/आभूषण यदि आपको विरासत में मिलता है अथवा उपहार स्वरूप मिलता है, तो जिससे आपको मिला है, उसके गुण / अवगुण भी उपरोक्त प्रकार उसमें समाये हुए मिलते हैं। यदि किसी व्यक्ति के रोगग्रस्त होने के फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई हो और उसका कोई आभूषण/रत्न आपको प्राप्त होता है, तो वह रोगग्रस्त ऊर्जा भी उसमें गर्भित होगी। साधारणतया किसी को यह ज्ञान नहीं हो पाता कि किसी अमुक रत्न/आभूषण में किस प्रकार का संक्रमण है। ऐसी दशा में यह मानकर चलना चाहिए कि खान से निकले हुए अनेकों स्पर्शित/उपयोग किए हुए व्यक्तियों में अधिकांश पवित्र व अच्छे व्यक्ति नहीं रहे होंगे। उपरोक्त कारणों से यह अति आवश्यक है कि किसी भी आभूषण अथवा रत्न को उपयोग में लाने से पहले उसका स्वच्छीकरण कर लिया जाए। इसकी विधि अध्याय २६ के क्रम (क) में दी गयी है। नमक के घोल अथवा चन्दन की धूप/अगरबत्तियां जलाकर और ev द्वारा स्वच्छीकरण किया जाता है, परन्तु कुछ रत्नों को नमक के घोल में डालने से क्षति पहुंच सकती है। ऐसे केस में पानी तथा चन्दन की धूप/अगरबत्तियों तथा ev द्वारा स्वच्छ करें। उपचार के उपयोग में लाये जाने वाले रत्नों को भी प्राणिक उपचार करने से पूर्व , यह आवश्यक है कि इन सभी उपरोक्त दूषणों की सफाई कर दी जाये। इसके अतिरिक्त उसमें अच्छी ऊर्जा भर दी जाये तथा उसका पवित्रीकरण (अथवा एक प्रकार की प्राण प्रतिष्ठा) कर दी जाये, ताकि उसकी कार्य करने की शक्ति काफी बढ़ जाये। इन सबकी विधि अगले अध्याय २६ में दी गयी है। नोट- आप एक ऐसा रत्न अपने हाथ में लीजिए जिसका स्वच्छीकरण नहीं हुआ। अपने सीधे हाथ की उंगलियों से अपने हाथ चक्र को संवेदनशील कर उसकी जांच (Scanning) कीजिए और उसका ऊर्जा क्षेत्र ज्ञात कीजिए। इसको बहुत धीरे-धीरे कीजिए। क्या आप रत्न की ऊर्जा को महसूस कर सकते हैं ? अब आप अपनी प्रथम और मध्य की उंगलियों पर रत्न से ऊर्जा लीजिए और अपने ५.४४३
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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