SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 914
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कभी-कभी एक व्यक्ति पर एक ही रत्न अलग- अलग समयों में अलग अलग प्रभाव डालता है। (१०) रत्नों का दूषित हो जाना- Contamination of Crystals (क) यह रत्नों का एक स्वाभाविक गुण है कि जब कभी कोई व्यक्ति उसका स्पर्श करता है अथवा उसका उपयोग करता है, तो उस व्यक्ति की ऊर्जा उस व्यक्ति से स्वतः ही अनजाने में प्रेषित होकर रत्न द्वारा खींच ली और सोख ली जाती है। यह अच्छी या बुरी ऊर्जा, स्वस्थ या रोगग्रस्त, स्वच्छ या गंदी- कैसी भी हो सकती है। उसी प्रकार, जिस प्रकार किसी मिटटी के कुल्हड़ में यदि आप कोई द्रव पदार्थ रखते हैं तो वह उस द्रव पदार्थ को आंशिक रूप से सोख लेता है। इस सोखी गई ऊर्जा को मनोवैज्ञानिक ऊर्जा (Psychic energy) के नाम से आगे के अध्याय/अध्यायों में सम्बोधित किया गया है। (ख) रत्नों का एक दूसरा स्वाभाविक गुण यह भी है कि जब कभी कोई व्यक्ति उसका स्पर्श करता है अथवा उसका उपयोग करता है, तो उसके गुण/अवगुण का अंश एवम् चरित्र का अंश उस रत्न में स्थानान्तरित हो जाता है, जिसको एक प्रकार से संस्कार के तौर पर समा जाना (psychic impregnation) कहते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि कोई व्यक्ति क्रोध करता है या निराशायुक्त्त है, तो उसकी नकारात्मक ऊर्जा रत्न में हस्तान्तरित होकर समा जाती है। और यदि कोई अच्छे गुणों का है, तो उसकी सकारात्मक ऊर्जा हस्तान्तरित होकर रत्न में समा जाती है। (ग) जैसा कि क्रम संख्या २ (ख) में वर्णन किया गया है कि रत्न में उसके कार्यों के कार्यान्वयन का निर्धारण (programme) किया जा सकता है। हो सकता है कि जो रत्न आपके पास हो, उसमें किसी व्यक्ति ने पहले प्रोग्राम किया हो और वह अभी भी उसमें अवस्थित हो। (घ) इस प्रकार आप देखेंगे कि रत्न में उपरोक्त तीन प्रकार का संक्रमण (contamination) हो सकता है। खान से निकालने में, काटने छांटने, सफाई करने, व्यापार में रत्नों को अनेक व्यक्तियों के माध्यम/हाथों से
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy