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________________ होती है, तो रंगीन प्राण पुनः सफेद प्राण में परावर्तित हो जाती है। ऐसे केस में यद्यपि उपचार तो प्रभावी होगा, किन्तु उतना प्रभावी नहीं होगा जितना पहले परिवर्तित हुए रंगीन प्राण ऊर्जा के उपचार द्वारा होता। जैसा अध्याय ८ के क्रम संख्या २ में वर्णन कर आये हैं, सही तौर पर यदि रंगीन ऊर्जा का उपयोग किया जाए, तो वह सफेद ऊर्जा के मुकाबले ज्यादा प्रभावी होती है तथा रोग को शीघ्र ठीक करती है। प्राण-ऊर्जा की शक्ति उसकी गति और कम्पन की दर द्वारा प्रभावित होती है। गति दूरी द्वारा प्रभावित होती है। रंगीन प्रकाश के स्रोत और उपचारित भाग के बीच में जितनी ज्यादा दूरी होगी, उतनी ही अधिक स्फूर्तिदायक ग्लोब्यूल्स की गति होगी। यदि यह दूरी बहुत कम हुई, तो गति भी तेन नहीं होगी और इसलिए प्राण ऊर्जा शक्ति काफी नहीं होगी। यदि यह दूर बहुत अधिक हुई तो गति इतनी तीव्र होगी कि इसका कुछ क्षतिकारी प्रभाव पड़ सकता है। ___ मृदु लेसर रोशनी (soft laser light) का लेसर प्राणिक उपचार पद्धति में उपयोग प्राणिक रंगीन उपचार पद्धति (chromotherapy) की एक अधिक उन्नत प्रणाली है। प्राणिक लेसर उपचार का प्रभाव अति शीघ्र होता है जिसकी तुलना उन्नत प्राणशक्ति उपचारक से की जा सकती है। प्राण-उपचार के शिक्षक श्री मेई लिंग (Mei Ling) की भविष्यवाणी है कि अब से कुछ दशक बाद, प्राणिक लेसर उपचार पद्धति का व्यापक उपयोग होगा। शिक्षक श्री मेई लिंग ने निम्नवत मार्गदर्शन दिया है : (क) लेसर प्रकाश के उत्पादन में जो पदार्थ प्रयोग में लाया जाए, उसमें कार्बन का भाग पचास से अस्सी प्रतिशत होना चाहिए। इस श्रृंखला से कम होने पर, उपचार इतना प्रभावी नहीं होता तथा इससे अधिक होने पर उपचार का नष्टकारी प्रभाव होगा। यह आवश्यक हो सकता है कि इस पदार्थ को कृत्रिम तौर पर बनाया जाए। लेसर प्रकाश के स्रोत और जिस भाग का उपचार किया जाना है, उनके बीच की दूरी एक से लेकर पांच फुट तक होनी चाहिए। दूरी का परिवर्तित हुए प्राण के स्थायित्व एवम् प्रेषित प्राण-ऊर्जा की शक्ति (प्रेषित प्राण की गति) पर प्रभाव पड़ता है। यदि यह काफी अधिक है,
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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