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तो स्फूर्तिदायक ग्लोब्यूल्स की बहुत अधिक गति होगी, जिससे
क्षतिकारी प्रभाव पड़ेगा। (ग) शक्ति या वाटेज (The power or wattage) प्राथमिकता तौर पर कम ही
होनी चाहिए। किन्तु, यदि यह बहुत कम हुई तो यह बहुत प्रभावकारी नहीं होगी और यदि बहुत अधिक हुई तो क्षतिकारक प्रभाव पड़ेगा। साधारणतया, लेसर प्राण का अनावरण (exposure) समय थोड़ा होना चाहिए। यदि यह काफी कम हुआ तो यह उपचार के लिए पर्याप्त नहीं होगा और यदि यह काफी अधिक हुआ तो यह अधिक औषधि (overdose) देने के समतुल्य होगा जिसका प्रभाव हानिकारक होगा। उपचार का कमरा प्राथमिकता तौर पर प्राणिक उत्पादक (pranic generator) होना चाहिए। उपचार से पहले और बाद में जांच (scanning) करनी चाहिए। ऊर्जन करने से पहले GS तथा स्थानीय झाड़ बुहार करनी चाहिए। ऊर्जन करने के पश्चात पुनः स्थानीय झाड़-बुहार की आवश्यक्ता पड़ सकती है। ऊर्जन करते समय, प्रेषित प्राण को प्रभावित अंग की ओर
प्रेषित करना चाहिए और स्थिरीकरण करना चाहिए। उपरोक्त मार्गदर्शन को आंख बंद कर स्वीकार नहीं करना चाहिए, अपितु इनका गहन अध्ययन करना चाहिए और इनकी सत्यता की व्यापक प्रयोगों द्वारा परीक्षा करनी चाहिए। इस विषय में कुछ और अधिक शोध एवम् अनुसंधान की आवश्यक्ता प्रतीत होती है. ताकि साधारण स्तर के उपचारक को शक्ति, अनावरण का समय आदि में सटीक मार्गदर्शन दिया जा सके।
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