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________________ अध्याय - २७ प्राणिक लेसर उपचार पद्धति Pranic Laser Therapy 1 रंगीन प्रकाश के उपयोग द्वारा उपचार (chromotherapy) के विषय में कुछ उपचारकों की यह गलत धारणा है कि ये केवल रंग ही हैं जो कि रोगी का उपचार करते हैं । जब तक यह धारणा सही प्रकार से नहीं समझी जाती, तब तक इस क्षेत्र में प्रगति धीमी ही रहेगी । यह रंगीन प्रकाश नहीं, बल्कि Vitality globules (स्फूर्तिदायक ग्लोब्यूल्स) या प्राण- ऊर्जा जो रंगीन प्रकाश द्वारा एक निर्धारित प्राण में परिवर्तित होती है, उपचार करती है। इससे स्पष्ट है कि प्राण ऊर्जा (vitality globules) का घनत्व अथवा उसकी मात्रा बहुत ही महत्वपूर्ण है। यदि उपचार कमरे में अधिक प्राण ऊर्जा होगी, तो प्राणशक्ति उपचार भी अधिक प्रभावी होगा। इसी प्रकार यदि उपचार कमरे में कम प्राण ऊर्जा होगी, तो प्राणशक्ति उपचार कम प्रभावी होगी। इसी कारण, यह परामर्श दिया जाता है कि उपचार- कमरे में वायु प्राण ऊर्जा की मात्रा बढ़ाने के लिये ज्यामिति प्राणिक उत्पादक का उपयोग किया जाये। इस प्रकरण में यह उल्लेखनीय है कि अध्याय ४ के क्रम संख्या ३ पर प्राणिक उत्पादक (Pranic Generator) का वर्णन किया गया है। चार भुजाकर पिरैमिड अथवा तीन दिशात्मक प्राणिक उत्पादक, तीन भुजाकार (अथवा दो दिशात्मक) प्राणिक उत्पादक से अधिक शक्तिशाली होता है। तीन दिशात्मक उत्पादक के उदाहरण (कं) चार भुजाकार आधार अथवा ( ख ) तीन- भुजाकार आधार अथवा (ग) वृत्ताकार आधार एवम् ऊपर एक केन्द्र से बना कमरा है। (क) तथा (ख) के केस में जो आकृति बनेगी, वह पिरैमिड (pyramid ) एवम् (ग) के केस में बनी आकृति शंकु (cone) कहलाती है। इस आकार के अथवा दो दिशात्मक उपचार के कमरों में वायु ऊर्जा लगभग भू-ऊर्जा के बराबर ही घनी होती है। एक अन्य महत्त्वपूर्ण बात जो ध्यान में रखनी चाहिए वह यह है कि परिवर्तित रंगीन प्राण ऊर्जा का स्थायित्व कितना है, अथवा वह कितने देर तक स्थिर रहती है। यह रंग के स्त्रोत से उपचारित भाग की दूरी पर निर्भर करती है। यदि दूरी बहुत कम ४१६
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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